स्वदेशी आंदोलन की असफलता
स्वदेशी आंदोलन जिस प्रकार तेजी से फैलती जा रही थी, उसे देखकर ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के होश उड़ गए. बंगाल से निकलकर इस आंदोलन का लहर मुंबई, पुणे, पंजाब, उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य भागों तक फैल चुका था. अभी यह आंदोलन और जोर पकड़ती जा रही थी कि अचानक 1908 ई. के मध्य इस यह आंदोलन शिथिल पड़ गया. इसके परिणाम स्वरुप यह आंदोलन असफल हो गया.
स्वदेशी आंदोलन के असफल होने के कारण
1. सामप्रदायिकता
इस आंदोलन का सबसे बड़ा दोष यह था कि यह मुसलमानों के बहुसंख्यक वर्ग को अपने साथ ले ना जा सका. अंग्रेजों ने संप्रदायिकता का जो बीज बोया था, इसका उन्होंने बहुत भरपूर लाभ उठाया. अंग्रेजों ने मुस्लिम लीग का गठन कर मुस्लिमों को आंदोलन को कमजोर बनाने के लिए ढाल के रूप में प्रयोग किया. इसी कारण ढाका के नवाब सलीमुल्लाह ने स्वदेशी आंदोलन विरोधी रवैया अपनाया था. आंदोलन जब चरम पराकाष्ठा पर था अभी अंग्रेजों ने बंगाल में सांप्रदायिक दंगे भड़काने में सफलता प्राप्त की. इस वजह से आंदोलन की लहर क्षीण पड़ गई.
2. आंदोलनकारियों की कुछ गलत नीतियाँ
आंदोलनकारियों की कुछ गलत नीतियों ने अंग्रेजों की फूट डालो और शासन करो की नीति को और अधिक मजबूत बना दिया. आंदोलनकारियों के द्वारा पारंपरिक रीति-रिवाजों, परंपराओं तथा धार्मिक त्योहारों से आंदोलन को जोड़ने से अंग्रेजों को संप्रदायिकता की जहर फैलाने में काफी आसानी हुई.
3. सरकार की दमनकारी कारवाई
आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी कार्रवाई की. ब्रिटिश सरकार ने सार्वजनिक प्रदर्शनों, सभाओं एवं प्रेस पर कठोर प्रतिबंध लगाए. इस कारण स्वदेशी आंदोलन धीमा पड़ता चला गया.
4. कांग्रेस में फूट
स्वदेशी आंदोलन के दौरान कांग्रेस में आपसी फूट पड़ गई. कांग्रेस के कुछ नेता चाहते थे कि स्वदेशी आंदोलन को स्वराज प्राप्ति तक ले जाया जाए, लेकिन कांग्रेस के उदारवादी नेता इस विचारधारा को संघर्ष के साथ जोड़ना नहीं चाहते थे. वे स्वदेशी आंदोलन को बहिष्कार तक ही सीमित रखना चाहते थे. इन सब बातों के कारण कांग्रेस में फूट पड़ गई. इसका लाभ ब्रिटिश सरकार ने उठाया और दमन चक्र और तेज कर दिया. तिलक को 6 माह का कैद, लाला लाजपत राय को निर्वासन दे दिया गया. विपिन चंद्र पाल ने राजनीति से संयास ले ली. इस प्रकार अब आंदोलन नेतृत्व विहीन हो गया.
5. प्रभावी संगठन का अभाव
स्वदेशी आंदोलन की लहर काफी तेजी से फैलते जा रहे थे. लेकिन फिर भी इसमें संगठन का अभाव था. इसकी वजह से अनुशासित ढंग से कोई कार्यक्रम नहीं हो पा रहा था. ऐसे में धीरे-धीरे आंदोलन धीमा होता चला गया और अंततः इस आंदोलन का अंत हो गया.
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