स्वदेशी आंदोलन
भारत की 20 वीं सदी की शुरुआत स्वदेशी आंदोलन के साथ हुई. इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रवाद को एक नई शक्ति प्रदान की. यह आंदोलन मात्र राजनीतिक दायरे को ही नहीं वरन इसने साहित्य, संगीत, कला, विज्ञान,उद्योग तथा जीवन के विविध क्षेत्रों को भी प्रभावित किया. इस आंदोलन से समाज का प्रत्येक वर्ग जुड़ गया था.
स्वदेशी आंदोलन के कारण
इस आंदोलन की पृष्ठभूमि तो पहले से ही ब्रिटिश शासन की आर्थिक शोषण की प्रवृत्ति ने तैयार कर दी थी. लेकिन इस आंदोलन की शुरुआत की विधिवत घोषणा 7 अगस्त 1905 ई. को कलकत्ता के टाऊनहाॅल में एक बैठक के बाद की गई. भारतीयों को बहुत पहले ही एहसास हो चुका था कि अंग्रेजों के कारण भारतीय कुटीर उद्योगों को नुकसान होने लगा और यहां का कच्चा माल देश से बाहर जा रहा है जिससे उनका आर्थिक नुकसान हो रहा है. इसी वजह से लोगों ने विभिन्न मंचों से विदेशी वस्तुओं की बहिष्कार और स्वदेशी अपनाने के लिए अपील की जाने लगी थी. वे स्वदेशी व्यापार को प्रोत्साहित करने लगे थे. अभी इन विषयों पर चर्चा चल ही रही थी कि ब्रिटिश सरकार के द्वारा बंगाल विभाजन करने संबंधी घोषणा कर दी. इस घोषणा ने आग में घी डालने का काम किया. इस घोषणा के विरोध में 7 अगस्त 1905 ई. को स्वदेशी आंदोलन की विधिवत घोषणा कर दी गई. हालांकि यह आंदोलन असफल रहा, पर इसके बहुत से महत्वपूर्ण परिणाम निकले.

स्वदेशी आंदोलन के परिणाम
1. स्वदेशी वस्तुओं को प्रोत्साहन
इस आंदोलन के परिणाम स्वरूप भारतीय लोगों के विदेशी वस्तुओं के स्थान पर भारत में बनी वस्तुओं का प्रयोग करना शुरू कर दिया. इसके कारण भारत में घरेलू उद्योगों का विकास होने लगा. इससे स्वदेशी वस्तुओं को काफी प्रोत्साहन मिली.
2. घरेलू उद्योगों का विकास
स्वदेशी आंदोलन के परिणाम स्वरुप भारतीय लोगों ने स्वदेशी वस्तुओं का ही इस्तेमाल करने का निर्णय लिया. इससे स्वदेशी वस्तुओं की काफी मांग बढ़ने लगी. इस वजह से धीरे-धीरे जो घरेलू उद्योग अंग्रेजों की नीतियों के कारण नष्ट हो चुके थे, फिर से विकसित होने लगे थे. अनेक स्थानों पर स्वदेशी वस्तुओं के क्रय-विक्रय हेतु स्वदेशी स्टोर भी खोले गए.

3. रोजगार के अवसर प्रदान करना
स्वदेशी आंदोलन के परिणाम स्वरुप घरेलू उद्योगों का काफी विकास हुआ. इसके कारण कार्यक्रम की मांग भी बढ़ने लगी, जिसके वजह से बड़ी संख्या में भारतीयों को नौकरी मिली. इसके साथ ही भारत में मिलने वाले कच्चे माल का उपयोग भारत में ही होने लगा.

4. राष्ट्रवादी भावना का विकास
स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव समाज के हर वर्ग पर पड़ा. बच्चे, बुजुर्ग, महिलाओं और छात्रों के बीच में यह आंदोलन काफी लोकप्रिय हुआ. उन्होंने इस आंदोलन में पूरे उत्साह के साथ भाग लिया और इस भावना को घर-घर तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण निभाई. इस कारण भारतीयों में राष्ट्रवादी भावना का तेजी से विकास होने लगा और आंदोलन को सशक्त बनाने के लिए दृढ़ संकल्प होने लगे. रविंद्र नाथ टैगोर, रविकांत सेन और मुकुल दास जैसे विद्वानों ने अपनी रचनाओं के द्वारा राष्ट्रवादी भावना को और बढ़ावा दिया. इसके द्वारा लोगों को अपने मन से अंग्रेजों का डर निकाल कर अत्याचार के विरूद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा मिलने लगी.

5. अंग्रेजों पर प्रभाव
इस आंदोलन में अंग्रेजों के हितों पर कुठाराघात किया. इस आंदोलन के कारण अंग्रेजी व्यापार को भारी नुकसान पहुंचा. अब भारत में ना केवल उसके द्वारा निर्मित वस्तुओं की मांग कम हो गई वरन उनको बाजार में बेचना भी कठिन हो गया क्योंकि लोग विदेशी वस्तुओं को जलाने लगे थे. अंग्रेजों ने इस स्थिति स्थिति से निपटने के लिए शक्ति का सहारा लिया और भारतीयों पर अत्याचार करना शुरू कर दिए. अंग्रेजों के द्वारा किए जाने वाले अत्याचार ने भारतीयों में उग्रवादी तथा क्रांतिकारी विचारधारा को और शक्तिशाली बना दिया. इस कारण युवा वर्ग में अंग्रेजों के नीतियों का विरोध करने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने तक की प्रेरणा मिलने लगी.
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