स्वदेशी आंदोलन के महत्वों का वर्णन करें

स्वदेशी आंदोलन का महत्व

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों में स्वदेशी आंदोलन के महत्वों का नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. स्वदेशी आंदोलन भारतीय इतिहास का एक बहुत ही महत्व पूर्ण आंदोलन है. इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था ब्रिटेन में बने वस्तुओं का बहिष्कार करना तथा अपने देश में बने वस्तुओं प्रयोग करना. इससे साम्राज्यवादी ब्रिटेन को आर्थिक हानि पहुँचती और भारत के लोगों के लिये भी बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होता. 7 अगस्त, 1905 को कलकता के ‘टाउन हाल’ में स्वदेशी आंदोलन की घोषणा की गई. इसी बैठक में ऐतिहासिक बहिष्कार प्रस्ताव भी पारित किया गया. इसी के साथ ही भारत में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हो गई. पुरे देश में अंग्रेजी वस्तुओं की बहिष्कार की जाने लगी तथा जगह जगह इन वस्तुओं की दहन की जाने लगी। जल्दी ही स्वदेशी आंदोलन पूरे देश में फ़ैल गया, लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ कारणों से स्वदेशी आंदोलन असफल हो गया.

स्वदेशी आंदोलन के महत्वों का

स्वदेशी आंदोलन भले ही असफल हो गया लेकिन इसके इस आंदोलन के महत्व से इनकार नहीं किया जा सकता है. इस आंदोलन क  बहुत ही दूरगामी परिणाम हुए. इस आंदोलन में आने वाले बहुत से आंदोलनों की पृष्ठभूमि तैयार की. इस आंदोलन में लगभग समाज के सभी वर्गों पर गंभीर प्रभाव डाला और एक विशाल जनमत को तैयार करने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस आंदोलन को प्रचार-प्रसार करने के लिए पारंपारिक परंपरागत तरीके अपनाए गए. इससे आंदोलन देश के कोने-कोने तक फैल गया. इस आंदोलन के परिणामस्वरुप आत्मनिर्भरता एवं आत्मशक्ति को बल मिला. अब ग्रामीण इलाकों में भी सामाजिक एवं आर्थिक सुधारों के महत्व के विषय पर चर्चाएं की जाने लगी. इस आंदोलन के द्वारा सामाजिक कुरीतियों पर भी प्रबल घात किया गया. देश में राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना की गई. अगस्त 1906 में राष्ट्रीय शिक्षा परिषद का गठन हुआ. अब आत्मनिर्भरता के लिए स्वदेशी उद्योगों की आवश्यकताओं को बल मिला. देश में कारखानों की स्थापना हुई और लोगों को रोजगार मिलने लगा.

स्वदेशी आंदोलन के महत्वों का

इस आंदोलन का गंभीर प्रभाव साहित्य और सांस्कृतिक क्षेत्रों पर भी पड़ा. बांग्ला साहित्य, विशेष रूप से काव्य के विकास की दृष्टि से तो स्वदेशी आंदोलन का काल स्वर्णकाल सिद्ध हुआ. यही नहीं आंदोलन समाज के प्रत्येक वर्ग को राजनीतिक विचारधारा से अवगत कराने का प्रयास किया. यह तो स्वीकार करना होगा कि स्वदेशी आंदोलन उपनिवेशवाद के विरुद्ध प्रथम सशक्त आंदोलन था. यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय संघर्ष की नीव सिद्ध हुआ. 

स्वदेशी आंदोलन के महत्वों का

देश में मिलने वाले कच्चे माल को देश में ही उत्पादों को बनाने के लिए उपयोग किया जाने लगा. भारत के लोग अब विदेशी वस्तुओं की बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल करने लगे जिससे उनमें देशप्रेम की भावना का काफी विकास हुआ. देखा जाए तो इस आंदोलन ने भारतीय जनमानस की विचारों में काफी बदलाव ला दिया था. यही वजह है कि स्वदेशी आंदोलन का भारतीय इतिहास में बहुत बड़ा महत्व है.

इन्हें भी पढ़ें:-

  1. स्वदेशी आंदोलन के कारण और परिणामों का वर्णन करें
  2. स्वदेशी आंदोलन के असफलता के क्या कारण थे? 
  3. स्वदेशी आंदोलन से आप क्या समझते हैं?

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