हर्षवर्धन की प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिए

हर्षवर्धन की प्रशासनिक व्यवस्था

हर्षवर्धन शासन प्रणाली, गुप्त काल के समान ही थे. गुप्तकालीन शासन पद्धति में ही कुछ परिवर्तन करके हर्ष द्वारा उसे अपनाया गया था. राजा के अधीन कार्यरत कर्मचारियों के नाम भी गुप्त काल के ही अनुरुप थे. राखल दास बनर्जी ने लिखा है कि मौर्यकाल तथा गुप्त काल की शासन संस्थाओं और कर्मचारियों के नाम में कुछ अंतर था, किंतु गुप्त तथा हर्ष कल के नामों में और संस्थाओं में इस प्रकार का कोई अंतर नहीं था. हर्षचरित ह्वेनसांग के वृतांत तथा तत्कालीन अभिलेखों से हर्ष कालीन शासन व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है.

हर्षवर्धन की प्रशासनिक व्यवस्था

हर्षवर्धन की प्रशासनिक व्यवस्था के प्रकार

1. राजा

शासन का केंद्रीय शासन का उत्तम अधिकारी राजा होता था. राजा को देवताओं का अवतार माना जाता था. बाण ने हर्ष के लिए लिखा है-वह सब देवताओं के सम्मिलित अवतार थे. शासन प्रबंध में राजा सक्रिय रूप से भाग लेता था. अपने मंत्रियों की नियुक्ति, आज्ञा व घोषणापत्र निकालना, न्यायाधीश का कार्य, युद्ध में सेना का नेतृत्व तथा अनेक प्रकार के जन्म कल्याण के कार्य राजा ही करते थे. प्रत्येक विभाग का सर्वोच्च अधिकारी राजा ही होता था और उसका अंतिम निर्णय वही लेता था. राजा के समय का विभाजन भी अत्यंत सावधानी के साथ किया गया था. उनका सारा समय धार्मिक कार्य और शासन संबंधी मामलों में विभक्त किया गया था. ह्वेनसांग ने राजा के परिश्रम व दानशीलता का वर्णन करते हुए लिखा है कि- राजा का दिन तीन भागों में विभक्त था. दिन का एक भाग तो शासन के मामलों में व्यतीत होता था. शेष दो भाग धार्मिक कृत्य में व्यतीत होते थे. वे काम से कभी थकने वाले नहीं थे. वे अपने कार्यों में इतने लीन रहते थे कि सोना और खना भूल जाते थे. हर्ष ने भी अशोक के समान अनेक धर्मशालाएं बनवाई. यहां निर्धनों को निशुल्क भोजन की सुविधा थी.

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2. मंत्रीपरिषद

हर्ष के शासन काल में मंत्रिपरिषद का अत्यधिक महत्व था. बाण और ह्वेनसांग दोनों ने अपनी रचनाओं में मंत्रिपरिषद का उल्लेख किया है. मंत्रीपरिषद के सदस्य महत्वपूर्ण मामलों में राजा को निरंकुश होने से रोकते थे. प्रभाकरवर्धन की मृत्यु व गृहवर्मा की हत्या के पश्चात राज्य का संचालन के प्रश्न मंत्रियों द्वारा ही सुलझाया गया था. ह्वेनसांग लिखा है कि राज्य के ऊपर शासन एक मंत्रिमंडल का होता है. हर्ष ने आमात्य और प्रधानामात्य शब्दों का उपयोग मंत्री और महामंत्री के लिए किया है.

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3. आय-व्यय

किसी भी राज्य और शासन को चलने के लिए बड़ी मात्रा में धन की जरूरत होती है. इसके लिए धन की उचित प्रबंधन भी जरूरी होता है. इसके लिए धन की आय और व्यय पर कुशलता से निगरानी करनी होती है. हर्ष के शासन व्यवस्था में आय-व्यय का भी लेखा-जोखा रखा जाता था. हर्ष के द्वारा प्रजा से 1/6 भूमि कर लिया जाता था. आय को चार भागों में बांटा गया था. इसका एक भाग धार्मिक गतिविधियां और सरकारी काम में खर्च होता है. दूसरा सार्वजनिक कार्यों और अधिकारियों पर, तीसरा भाग पुरस्कार और वृत्ति देने तथा चौथा भाग  दान-पुण्य में खर्च किया जाता है.

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4. न्याय विभाग

हर्षकालीन शासन प्रणाली में न्याय व्यवस्था भी शासन का एक महत्वपूर्ण भाग थी. राज्य में शांति और व्यवस्था बनाने के लिए पुलिस व्यवस्था भी थी. अधिकारियों को दण्डिक और दण्डपाशिक कहा जाता था. राजद्रोह के लिए आजीवन कारावास, सामाजिक अपराधों के लिए अंग-भंग व देश निकाला दिया जाता था. गंभीर अपराधों के लिए मृत्युदंड भी दिया जाता था. बाण के अनुसार विशेष अवसरों पर कैदी बंदीगृह से छोड़ जाते थे. हर्ष के समय दिव्य प्रणाली का भी न्याय करने में प्रयोग किया जाता था.

5. सार्वजनिक हित के कार्य

अशोक के समान हर्ष ने भी बहुत से सामाजिक हित के कार्य किए. उसने अनेक परोपकारी और धार्मिक संस्थाओं का निर्माण कराया. उनके द्वारा अनेक चैत्य, स्तूपों और विहारों का भी निर्माण कराया गया. यात्रियों की सुविधा के लिए सड़कों और धर्मशालाओं का निर्माण किया गया. नालंदा विश्वविद्यालय जैसे शिक्षा केंद्रों की उन्नति के लिए भी हर्ष ने महत्वपूर्ण कार्य किए.

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6. रक्षा विभाग

हर्ष के प्रशासन में रक्षा विभाग एक बहुत ही महत्वपूर्ण विभाग था. ह्वेनसांग के वृतांत के अनुसार हर्ष के पास एक विशाल संगठित सेना थी, जिसमें 60 हजार हाथी और एक लाख घुड़सवार थे. उनके विवरण में पैदल सेना की संख्या का उल्लेख नहीं है, लेकिन यह अनुमान लगाया जाता है कि पैदल सेना की संख्या इनसे कई गुना ज्यादा थी. युद्ध में प्राय: तलवार, ढाल,भाले,कवच धनुष-बाण आदि का ही प्रयोग किया जाता था. इसके अलावा गुप्तचर व्यवस्था भी थी जो गुप्त रूप से अपराधियों का पता लगाते थे.

हर्षवर्धन की प्रशासनिक व्यवस्था

मूल्यांकन

हर्ष ने यद्यपि गुप्तकालीन शासन प्रणाली का ही अनुकरण किया था किंतु हर्ष कालीन प्रशासन, गुप्त प्रशासन के समान कार्यकुशल न था. चंद्रगुप्त द्वितीय के समय से ही शासन का स्तर बहुत ही गिरता चला गया था. फिर भी फाह्यान ने सकुशल भारत की यात्रा की थी. जबकि ह्वेनसांग को जल और दल दोनों मार्गों पर डाकूओं शिकार बनना पड़ा था. इसे स्पष्ट होता है कि मार्ग सुरक्षित नहीं थे. हर्ष कालीन सैनिकों का व्यवहार भी अच्छा नहीं था. उन्होंने मार्ग चलते समय जमींदारों के खेतों को लूटा था. अतः हर्ष की शासन व्यवस्था, गुप्त शासन प्रशासन की तुलना नहीं कर सकता.

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