सम्राट हर्षवर्धन
हर्षवर्धन की सैन्य उपलब्धियों और साम्राज्य विस्तार सम्राट हर्षवर्धन की शासनकाल बहुत ही बड़ी उपलब्धि है. थानेश्वर और कन्नौज राज्यों के मिल जाने बाद सम्राट हर्षवर्धन की शक्ति और बढ़ गई. अब उनकी गणना उत्तर भारत की शक्तिशाली शासक में होने लगी. इसके पश्चात उसने भारत की खोई हुई राजनीतिक एकता को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया. ह्वेनसांग के अनुसार हर्षवर्धन ने पूर्व की ओर बढ़ कर उसने उन पांच राज्यों पर आक्रमण किया जिन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी. छह वर्षों तक जब तक उनसे लड़ता रहा जब तक कि उनपर विजय प्राप्त नहीं कर ली. लेकिन दुर्भाग्यवश हर्षवर्धन की दिग्विजय की क्रमिक वर्णन के बारे में ह्वेनसांग की जीवनी पर लिखा नहीं गया है.

हर्षवर्धन की सैन्य उपलब्धियां
1. शशांक पर विजय
हर्ष ने अपने ममेरे भाई भाण्डी को शशांक पर आक्रमण करने भेजा. ले उसके बाद हुए घटनाओं के बारे में विवरण नहीं मिलती है. ऐसी संभावना जताई जाती है कि भाण्डी के द्वारा आक्रमण की खबर पाकर शशांक कनौज छोड़ कर भाग गया. मंजूश्रीमूलकल्प के अनुसार हर्ष पूर्वी भारत की ओर अपने अभियान को बढ़ाया. इसके बाद वह पुण्ड्रवर्धन तक पहुंचकर दुष्टकर्मा सोम को पराजित किया और उसे अपनी अधीनता स्वीकार करने पर मजबूर किया. गौड़ प्रदेश के लोगों ने हर्ष की अधीनता स्वीकार नहीं की. अतः वह इन प्रदेशों पर अधिकार करने में असफल रहा जिसके कारण वह वापस अपने राज्य लौट आया. शशांक की मृत्यु के बाद उसने उसके राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया तथा शशांक के राज्य का कुछ हिस्सा उसने कामरूप के राजा भास्करवर्मा को दे दिया.

2. वलभी पर विजय
ह्वेनसांग के अनुसार वलभी राजा संकुचित विचारधारा तथा क्रोधी स्वभाव का व्यक्ति था. यह राज्य उत्तर में हर्ष के साम्राज्य तथा दक्षिण में पुलकेशी द्वितीय के बीच में स्थित था. इस राज्य के अंतर्गत पश्चिम मालवा आता था. वलभी का हर्ष के समकालीन शासक ध्रुवसेन अथवा ध्रुवभट्ट था. हर्ष ने ध्रुवभट्ट पर आक्रमण किया. ध्रुव हर्ष के सामने टायर ना सका. उसने भागकर भड़ौच के राजा दद्द द्वितीय के यहां शरण ली. कालांतर में हर्ष और ध्रुव भट्ट के बीच मधुर संबंध हो गए तथा हर्ष ने अपनी पुत्री का विवाह ध्रुव भट्ट के साथ कर दिया. इस वैवाहिक संबंध का राजनीतिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व था क्योंकि इससे ना केवल वलभी और हर्ष के राज्य में मैत्रीपूरण संबंध स्थापित किया वरन हर्ष ने पश्चिम की ओर से अपनी सीमाओं को भी सुरक्षित कर लिया तथा दक्षिण विजय के लिए पृष्ठभूमि तैयार कर ली. विद्वानों का मत है कि संभवत ध्रुवभट्ट ने हर्ष की अधीनता स्वीकार कर ली और वह उसके सामांत के रूप में शासन करता था. गुर्जर शासक दद्द के नौसारी दानपत्र में हर्ष और ध्रुवभट्ट के बीच के युद्ध का वर्णन पाया जाता है. लेकिन हर्ष ने वलभी पर पर कब आक्रमण किया इसकी निश्चित तिथि ज्ञात नहीं है. गुर्जर नरेश दद्द का शासनकाल 629-640 ई. था तथा ध्रुवभट्ट 630 ई में शासक बना था. अतः यह निष्कर्ष निकाली जाती है कि यह आक्रमण 630-640 ई. के बीच हुआ.

3. कच्छ और सूरत पर विजय
वलभी के आक्रमण के समय ही हर्ष कच्छ और सूरत पर भी विजय प्राप्त की थी. ह्वेनसांग के वर्णन से इन विजयों की पुष्टि होती.
4. सिंध विजय
हर्षचरित के अनुसार हर्ष ने सिंध के राजा पर भी आक्रमण किया था तथा उसे परास्त करने में सफलता प्राप्त की थी.
5. कांगोद विजय
महानदी के दक्षिण में बंगाल की खाड़ी किनारे पर कांगोद प्रदेश स्थित था. ह्वेनसांग के अनुसार हर्ष ने 643 ई. में कांगोद को अपने साम्राज्य में मिला लिया था.

6. पंजाब व मिथिला पर विजय
ह्वेनसांग की यात्रा वृतांत से पता चलता है कि हर्ष ने अपने राज्य अभिषेक के 6 वर्ष के अंदर ही पंजाब, मिथिला और उड़ीसा पर अधिकार कर लिया था. किंतु बाण ने पंजाब विजय का श्रेय प्रभाकरवर्धन को दिया है. संभव है कि पहले प्रभाकर वर्धन पंजाब पर अधिकार किया हो, किंतु उनकी मृत्यु के पश्चात उत्पन्न परिस्थितियों से लाभ उठाकर पंजाब ने स्वतंत्रता घोषित करते हो और हर्ष ने फिर से पंजाब पर विजय प्राप्त की हो.
7. विद्रोहियों का दमन
चीनी इतिहासकार मा-त्वान-लिन के अनुसार 618 ई. से 627 ई. तक का समय हर्ष के लिए बहुत कठि समय था. इस समय उसके साम्राज्य में कई स्थानों पर विद्रोह हो रहे थे. परंतु हर्ष ने इन विद्रोह का दमन कर दिया. मा-त्वान-लिन ने लिखा है कि थांग-वंश के शासनकाल (618-627) में भारत में बड़े-बड़े भयंकर विद्रोह हुए. शीलादित्य (हर्ष) ने एक विशाल सेना एकत्र की एकत्र किया और वीरता से लड़कर उसने भारत के चारों भागों के राजाओं को दंड दिया जिससे उसके मुख उत्तर की ओर घूम गया और उन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार की.

8. पर्वतीय प्रदेश पर विजय
बाण के हर्षरचित से पता चलता है कि हर्ष ने एक बर्फ से ढके प्रदेश पर विजय प्राप्त की थी. यह प्रदेश कौन सा है इस विषय पर विद्वानों में मतभेद है. श्री भगवान लाल इंद्रजी तथा ब्यूलर इस प्रदेश को नेपाल मानते हैं तथा अपने समर्थन में नेपाल में हर्ष सम्वत् के प्रचलन का उल्लेख करते हैं, किन्तु डॉ. लेबी इस मत का विरोध करते हैं. वे नेपाल को हर्ष के अधीन नहीं वरन तिब्बत के अधीन मानते हैं. डॉ. आर के मुखर्जी इस प्रदेश को कश्मीर बताते हैं. किंतु ह्वेनसांग ने कश्मीर को स्वतंत्र राज्य बताया है. अतः संभव है कि हर्ष द्वारा विजित प्रदेश नेपाल ही रहा हो.
9. कामरूप
हर्ष ने कामरूप के शासक भास्कर वर्मा से शशांक का सामना करने के लिए संधि की थी. डॉ. मुकर्जी जैसे कुछ विद्वानों का विचार है कि हर्ष ने भास्कर वर्मा को उसकी अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया. इस कारण भास्कर वर्मा को अपनी इच्छा के विरुद्ध हुए ह्वेनसांग को हर्ष के पास भेजना पड़ा. कन्नौज की सभा में भी भास्कर वर्मा का उपस्थित होना उसकी अधीनता का द्योतक है, किंतु इस मत को स्वीकार करना कठिन है क्योंकि डाॅ. मुकर्जी आदि विद्वानों के द्वारा प्रस्तुत तर्क अत्यंत निर्बल है.

10 पुलकेशिन द्वितीय से युद्ध
हर्ष के द्वारा अपने साम्राज्य की सीमाओं की विस्तार करने परिणामस्वरूप उसके राज्य की सीमाएं पुलकेशी द्वितीय की सीमाओं से टकराने लगी थी. हर्ष को अपने साम्राज्य की सीमा के समीप देखकर पुलकेशी के मन में भय की आशंका होना स्वाभाविक था. इसके अतिरिक्त मालवा के संबंध में पुलकेशी ने जो आशांकाएं लगाई थी वह हर्ष को पराजित किए बिना पूर्ण करना संभव नहीं था. दूसरी ओर हर्ष अपनी निरंतर सफलता से प्रेरित होकर पुलकेशी को परास्त करना चाहता था. ऐसी स्थिति में चालुक्य नरेश पुलकेशी और हर्ष के मध्य युद्ध होना स्वाभाविक था. हर्ष और पुलकेशी के मध्य हुआ युद्ध एक महत्वपूर्ण घटना थी. इस युद्ध के विषय में ह्वेनसांग ने लिखा है कि “इस समय राजा शिलादित्य महान (हर्ष) पूर्व और पश्चिम में आक्रमण कर रहे थे. परंतु महाराष्ट्र ने उसके अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया. ह्वेनसांग के अनुसार महाराष्ट्र का राजा पुलकेशी द्वितीय था. दोनों के बीच घमासान युद्ध में हर्ष को सफलता प्राप्त नहीं हुई. एहोल के अभिलेख से इसकी पुष्टि होती है.
पुलकेशी द्वितीय द्वारा हर्ष को परास्त करना उसके जीवन के सबसे महान उपलब्धि थी. इस युद्ध के पश्चात पुलकेशी द्वितीय के शक्ति अत्यंत वृद्धि हुई. इस युद्ध के पश्चात पुलकेशी ने परमेश्वर की उपाधि धारण की. दोनों के मध्य यह युद्ध 630 और 634 ई. के मध्य हुआ. यह युद्ध कहां हुआ इस विषय में विद्वानों में मतभेद है. अधिकांश का मत है कि युद्ध नर्मदा नदी के किनारे हुआ था.
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इन्हें भी पढ़ें:
- अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नीति पर प्रकाश डालें
- दिल्ली सल्तनत के संस्थापक के रूप में कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलब्धियों का वर्णन करें
- भारत पर तुर्क आक्रमणों का वर्णन कीजिए
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नागभट्ट द्वितीय के काल तक प्रतिहार वंश के उत्कर्ष को अनुरेखित कीजिए ??
पुलकेशिन द्वितीय के विशेष संदर्भ में हर्ष के सामरिक अभियानों का वर्णन कीजिए ??
Thanks 🙏🙏🙏 sir app asay hi humari help karta raho thanks 🙏 Mahadev apka face par Humsa smile banya rakhe