हिटलर की गृह एवं विदेश नीति का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए

हिटलर की गृह नीति की आलोचनात्मक परीक्षण

हिटलर ने अपने गृह नीति के अंतर्गत सबसे पहले अपने विरोधियों का दमन करना शुरू किया. उसके मुख्य रूप से दो ही शत्रु थे- साम्यवादी (कार्ल मार्क्स के अनुयायी) तथा यहूदी. कैदियों पर कारावास में  बेइंतहा जुल्म किया जाता था. इनके अलावा हिटलर ने रोमन कैथोलिक ईसाई समुदाय पर भी जुल्म करना दमन किया क्योंकि वे पोप के प्रति अपनी श्रद्धा रखते थे. कैटल बी के अनुसार हिटलर ने न केवल साम्यवादियों, यहूदियों और कैथोलिकों पर जुल्म ढाये, बल्कि उसने लगभग सभी वर्ग के लोगों पर जुल्म किया था. उसके जुल्म के आतंक से त्रस्त होकर लाखों लोग जर्मनी छोड़कर भाग गए. हिटलर के ऐसी कार्रवाइयों से देश में आतंक और डर का माहौल बन गया। लोग डर से हिटलर का समर्थन करते थे.

हिटलर की गृह एवं विदेश नीति का आलोचनात्मक परीक्षण

हिटलर ने जर्मनी के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों पदों को एक में मिला दिया ताकि वह जर्मनी पर अकेले शासन कर सके. 1935 ई. में वह जर्मनी का राष्ट्रपति बन गया. उसने पूरे जर्मनी में नाजी दल के सिद्धांतों का प्रचार किया. जर्मनी का कानून बनाने का अधिकार केवल हिटलर तक ही सीमित कर दिया गया. ऐसे में हिटलर अपने मन के अनुसार क़ानून बनाकर जनता पर थोप देता था। जनता को पसंद आए या न आए उनको मानना ही पड़ता था.  हिटलर हमेशा एक व्यक्ति के शासन पर विश्वास करता था. धर्म के मामले में भी वह जर्मनी के अंदर दूसरी सत्ता का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं कर सकता था. रोमन कैथोलिक समुदाय के लोग पोप के प्रति श्रद्धा एवं भक्ति रखते थे. यही कारण उसने कैथोलिकों पर भी अत्याचार किए. इस कारणं उसको जर्मन तथा दुसरे देशों के कैथोलिक समुदाय से समर्थन मिलना बंद हो गया. हिटलर का मानना था कि जर्मन को छोड़कर कोई भी आर्य नहीं है. अत: उसने सभी सरकारी पदों विद्यालयों विश्वविद्यालय आदि स्थानों से गैर आर्यन जाति लोगों को पदच्युत कर दिया. गैर आर्यन लोगों को स्कूलों कॉलेजों तथा अन्य सरकारी संस्थानों के सभी सुविधाओं से वंचित किया गया. ऐसे में सभी गैर आर्यन जातीय लोगों के मन में हिटलर के प्रति नफरत की भावना बढ़ती चली गई. स्कूल कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में नाजी दल के सिद्धांतों को पढ़ाया जाने लगा. पत्रकारिता, रेडियो, संगीत, फिल्म, साहित्यों और कलाओं पर भी कड़ी नियंत्रण रखी जाने लगी. इससे लोगों की स्वतंत्रता पर गहरा असर हुआ.

हिटलर की गृह एवं विदेश नीति का आलोचनात्मक परीक्षण

प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की करारी हार के बाद उसकी आर्थिक स्थिति बहुत ही नाजुक हो गई थी. वर्साय की संधि कर जर्मनी पर युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में भरकम धन चुकाने के लिए दबाव डाला गया. अत: हिटलर जर्मनी को फिर से आर्थिक रूप से समृद्ध बनाना चाहता था. उसने लेबर ट्रस्टी नामक संस्था की स्थापना की ताकि श्रमिक वर्ग की समस्याओं का समाधान किया जा सके तथा उनके अधिकारों की रक्षा की जा सके. बेगारी की समस्या को दूर करने के लिए स्त्रियों को चारदीवारी के अंदर ही रहने का आदेश दिया गया. उसने सेना में वृद्धि, लेबर कैंप की स्थापना करके 20 लाख रोजगार सृजन किया.इसके अलावा उसने खेती को राज्य के नियंत्रण में ले लिया. उसकी कोशिश यह थी कि जर्मनी स्वावलंबी बने. अतः जो वस्तुएं विदेशों से मंगाई जाती थी, उनको स्वयं निर्माण करना शुरू कर दिया. इस कारण वस्तुओं के उत्पादन में भी काफी वृद्धि आने लगी. रोजगार भी बढ़ना शुरू हो गया. हिटलर ने अपने व्यापार के क्षेत्र में भी काफी ध्यान दिया जिससे जर्मनी ने व्यापार में भी काफी उन्नति कर ली.

हिटलर की गृह एवं विदेश नीति का आलोचनात्मक परीक्षण

हिटलर ने अपने गृह नीति के द्वारा अपने देश के स्वाभिमान में भले ही वृद्धि की, लेकिन उसकी नीति ने देश के अंदर घृणा, भय, संदेह और आतंक जैसे माहौल पैदा कर दिए थे. लाखों की संख्या में लोग जर्मनी को छोड़कर भाग गए. लिप्सन उनके अनुसार हिटलर ने अपने विरोधियों का दमन इस तरह किया जैसे कि कसाई खाने पशुओं का वध किया जाता है. हिटलर के अनुसार यहूदी पूरी दुनिया के दुश्मन हैं वह कहता था कि जो यहूदियों को मारता है, वह अच्छा कार्य करता है. उसने समाजवादियों और यहूदियों को कैद खाने में डाल दिया. कुल मिलकर देखा जाए तो हिटलर को नाजियों के अलावा किसी अन्य जर्मन जातियों के समर्थन प्राप्त नहीं था. वह केवल भय और आतंक फैलाकर देश पर शासन कर रहा था.

हिटलर की विदेश नीति की आलोचनात्मक परीक्षण

हिटलर जर्मनी को एकसत्तात्मक राष्ट्र बनाना चाहता था. वह वर्साय की संधि की संपूर्ण व्यवस्था को कुचलना चाहता था. उसने अपनी पुस्तक मेरा संघर्ष में “वर्साय की संधि का नाश हो” का नारा दिया था. उसकी इच्छा थी कि जर्मनी विश्व का एक महान शक्ति बने. अत: उसने इस दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया. वर्ष 1932 ई. में राष्ट्र संघ के द्वारा जेनेवा में नि:शस्त्रीकरण सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन में हिटलर ने प्रस्ताव रखा कि उसे भी अन्य देशों की तरह शस्त्रीकरण का अधिकार दिया जाना चाहिए अथवा सभी राष्ट्रों को जर्मनी के समान नि:शस्त्रीकरण का पालन करना चाहिए. हिटलर के इस प्रस्ताव का जर्मनी ने विरोध किया. फ्रांस के विरोध के कारण जर्मनी 14 अक्टूबर 1933 ई. को नि:शस्त्रीकरण सम्मेलन तथा राष्ट्र संघ से अलग हो गया.

पोलैंड और जर्मनी के बीच में संबंध पहले अच्छे नहीं थे, लेकिन दोनों देशों की अपनी-अपनी मजबूरियां थी. अतः इसी मजबूरियों ने  दोनों को आपस में समझौते करने पर मजबूर कर दिया. पोलैंड को डर था कि यदि रूस और जर्मनी में कभी संघर्ष होती है तो वह दोनों के बीच में पिस सकता है. इधर जर्मनी भी यूरोपीय राष्ट्रों को दिखाना चाहता था कि वह शांति का समर्थक है. अत: उसने पोलैंड के साथ 23 जनवरी 1934 ई. को 10 वर्षों के लिए अनाक्रमण समझौता किया. इस समझौते की अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि हिटलर ने यह समझौता अपने स्वार्थ के लिए किया था. हकीकत में उसे पोलैंड से मित्रता करने की कोई रूचि नहीं थी. हिटलर ने इटली के शासक मुसोलिनी के द्वारा प्रस्ताव रखने पर वर्ष 1933 ई. में इंग्लैंड, फ्रांस और इटली के साथ शांति समझौता किया. इस समझौता के तहत उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वे कभी युद्ध नहीं करेंगे और शांति समझौते का पालन करेंगे.

हिटलर की गृह एवं विदेश नीति का आलोचनात्मक परीक्षण

हिटलर ने वर्साय संधि की धाराओं को तोड़ते हुए 16 मार्च 1935 ई. को प्रत्येक जर्मन नागरिकों के लिए देश के प्रत्येक नागरिकों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य करने की घोषणा की. जर्मनी के द्वारा अपने नागरिकों के लिए अनिवार्य सैनिक सेवा लागू कर दिए जाने के कारण यूरोपीय देशों को काफी चिंता होने लगी. उन्होंने इस विषय पर चर्चा करने के लिए अप्रैल, 1935 ई. में फ्रांस, इंग्लैंड और इटली के द्वारा सिरसा में सम्मेलन बुलाया गया. इस सम्मेलन में हिटलर के इस कदम की भारी आलोचना की गई. हिटलर ने जून 1935 ई को इंग्लैंड के साथ नौसेना समझौता कर लिया. इस समझौता के द्वारा जर्मनी को इंग्लैंड की अपेक्षा 35% नौसेना रखने का अधिकार मिल गया. इस समझौता के अनुसार यह भी तय किया गया कि वह अपने पड़ोसियों के बराबर वायुसेना रख सकता है. इस संधि से वर्साय की संधि काफी कमजोर हो गई और जर्मनी को काफी बल मिला. 

1935 ई. में इटली ने जब अबीसीनिया पर आक्रमण किया तो इसके विरोध में फ्रांस और इंग्लैंड ने इटली पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. किंतु इस समय जर्मनी ने इटली की सहायता की और मुसोलिनी से मित्रता कर ली. इसके बाद 7 मार्च 1936 ई. को हिटलर ने भी राइन क्षेत्र में अपनी सेनाएं भेज दिया और राइनलैंड पर अधिकार कर लिया. अबीसीनिया पर इटली के शासक मुसोलिनी के द्वारा आक्रमण करने से उसे न सिर्फ हिटलर की सराहना मिली बल्कि उन को आर्थिक सहायता भी मिली. हिटलर के इस कदम ने मुसोलिनी और हिटलर की दोस्ती को मजबूत बना दिया. इस कारण 21 अक्टूबर 1936 ई. को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने एक समझौता किया. इस समझौते के अनुसार जर्मनी ने अबीसीनिया पर इटली के अधिकार को स्वीकार किया. इधर इटली ने भी स्वीकार किया कि जर्मनी, ऑस्ट्रिया पर अधिकार कर सकता है. इस प्रकार हिटलर को इटली के रूप में एक दोस्त मिल गया.

 

हिटलर ने 25 नवंबर 1936 ई. को रूस के खिलाफ जापान से संधि कर ली. इस संधि को करने का मुख्य उदेश्य था कि रूस के द्वारा जर्मनी पर होने वाले संभावित हमले के खतरे को कम करना था. जापान और रूस के बीच पहले से ही शत्रुता थी ही. अत: इस संधि का फायदा जापान को भी मिला. इस प्रकार यूरोप के राष्ट्र दो धुरी में बंट गए. एक ओर इंग्लैंड, फ्रांस और रूस तो दूसरी ओर जर्मनी, इटली और जापान थे. हिटलर की नजर ऑस्ट्रिया पर पर पहले से ही थी. अत: इस समझौतों के द्वारा खुद को सुरक्षित कर 13 मार्च, 1938 ई. को हिटलर की फौज ने ऑस्ट्रिया पर धावा बोल दिया और उस पर अपना अधिकार कर लिया. हिटलर ने ऑस्ट्रिया पर अधिकार करने के बाद उसे जर्मन साम्राज्य का एक प्रांत के रूप में घोषित कर दिया. ऑस्ट्रेलिया पर अधिकार करने के बाद हिटलर का अगला निशाना चेकोस्लोवाकिया था. चेकोस्लोवाकिया में लगभग एक करोड़ 50 लाख नागरिक थे, जिसमें 16% स्लोवाक, 50% चेक्स, 22% जर्मन और 4% हंगेरियन तथा 4% प्रतिशत रुमानियाँ नागरिक थे.  इन नागरिकों में आपसी मतभेद की भावना काफी बढ़ती जा रही थी. गैर चेक्स जातियां चाहती थी कि उन्हें भी सरकारी पदों में बराबरी का दर्जा प्राप्त हो. इधर हंगेरियन चाहते थे कि वे हंगरी में मिले, जर्मन चाहते थे सीमांत प्रदेशों को जर्मन में मिला दिया जाए. अतः इस मतभेद का फायदा हिटलर ने उठाया. उसने जर्मनों को विद्रोह के लिए भड़काया. इस कारण चेकोस्लोवाकिया और जर्मनी के बीच तनाव का वातावरण पैदा हो गया. लेकिन इस वातावरण को देखकर इंग्लॅण्ड ने हस्तक्षेप किया और और उनके बीच एक समझौता कराया. इस समझौते को म्यूनिख समझौता कहा जाता है. इस समझौता के तहत स्यूडेटनलैंड पर जर्मनी का अधिकार हो गया. इस संधि के जर्मनी के हौसले को और बढ़ा दिया. उसने स्लोवाकों को भी स्वतंत्र राज्य की मांग करने के लिए भड़काया. हिटलर के उकसाने पर जनता ने राष्ट्रपति डॉ हाशा पर इतना दबाव डाला कि उसे चेकोस्लोवाकिया को जर्मनी में मिलाने की घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने पर मजबूर होना पड़ गया. हिटलर के इस कदम से इंग्लॅण्ड और फ्रांस उसके घोर शत्रु बन गए. हिटलर पूर्वी यूरोप तथा मध्य यूरोप में अधिकार करने का इच्छुक था लेकिन वह जानता था कि उसके इस कदम का रूस विरोध कर सकता है. अतः उसने रूस के साथ अगस्त 1939 ई. में अनाक्रमण की संधि कर ली. इस समझौते के कारण हिटलर की ताकत और बढ़ गई. उसे रूस की ओर से खतरा भी खत्म हो गया था. अतः वह पोलैंड पर आक्रमण करने की तैयारी करने लगा. 1 सितंबर 1949 ई. को जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया. पोलैंड की ओर से इंग्लॅण्ड और फ्रांस के हस्तक्षेप करने के साथ ही द्वितीय विश्वयुद्ध का आगाज हो गया.

हिटलर की गृह एवं विदेश नीति का आलोचनात्मक परीक्षण

हिटलर के विदेश नीति का अध्ययन करने पर हम पाते है कि उसने जितनी भी संधियां की, उसके पीछे हिटलर का कुछ न कुछ स्वार्थ ही था. उसने जब तक जर्मनी का पूरी तरह सैन्यकरण न कर दिया तब तक उन्होंने शांति समझौतों का नारा दिया और जब जर्मनी का पूरी तरह सैन्यकरण हो गया तो उसने अपने बल के द्वारा सभी शांति समझौताओं को ताक में रख दिया. मुसेलिनी के साथ संधि करने के पीछे हिटलर का मकसद था कि ऑस्ट्रिया करने के लिए उसे इटली का समर्थन मिल जाए क्योंकि हिटलर ने ऑस्ट्रिया पर अधिकार करने के लिए पहले भी प्रयास किया गया था. लेकिन मुसेलिनी के द्वारा ऑस्ट्रिया की सुरक्षा के लिए सेना भेज देने के कारण हिटलर नाकाम हो गया था. हिटलर ने भी बदले में इटली को अबीसीनिया पर न सिर्फ अधिकार करने में मदद की, बल्कि उसे आर्थिक सहायता भी मिली. इसके अलावा जापान से संधि करने का उदेश्य भी रूसी खतरे को कम करना था. हिटलर ने समय-समय पर संधियों को खुद तोड़ा भी. उदाहरणर्थ- हिटलर ने 1939 ई. में रूस के साथ अनाक्रमण की संधि की थी, पर जब उसका स्वार्थ सिद्ध हो गया तो उसने 1941 ई. में बिना कुछ चेतावनी दिए इस संधि को तोड़ कर रूस पर हमला कर दिया. इसी प्रकार हिटलर ने पोलैंड के साथ भी किया. कुल मिलाकर देखा जाए तो हिटलर की सभी संधिओं के पीछे उसका कुछ न कुछ स्वार्थ छिपा हुआ था.   

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इन्हें भी पढ़ें:

  1. हिटलर की गृह नीति का वर्णन कीजिए
  2. हिटलर की विदेश नीति का वर्णन करें
  3. द्वितीय विश्वयुद्ध(1939-45 ई.) की प्रमुख घटनाएं क्या थी?

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