हिटलर की विदेश नीति का वर्णन करें

हिटलर की विदेश नीति

हिटलर जर्मनी को एकसत्तात्मक राष्ट्र बनाना चाहता था. वह वर्साय की संधि की संपूर्ण व्यवस्था को कुचलना चाहता था. उसने अपनी पुस्तक मेरा संघर्ष में “वर्साय की संधि का नाश हो” का नारा दिया था. उसकी इच्छा थी कि जर्मनी विश्व का एक महान शक्ति बने. अत: उसने इस दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया. हिटलर की विदेश नीति को गहराई से अध्ययन करने से हम पाते हैं कि उसने जब तक जर्मनी का पूरी तरह सैन्यकरण न कर दिया तब तक उन्होंने शांति समझौतों का नारा दिया और जब जर्मनी का पूरी तरह सैन्यकरण हो गया तो उसने अपने बल के द्वारा सभी शांति समझौताओं को ताक में रख दिया.

हिटलर की विदेश नीति

विदेश नीति के तहत किए गए कार्य

1. नि:शस्त्रीकरण सम्मेलन

वर्ष 1932 ई. में राष्ट्र संघ के द्वारा जेनेवा में नि:शस्त्रीकरण सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन में 10 राष्ट्रों के 200 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया. इस सम्मेलन में इस सम्मेलन में जर्मनी ने भी हिस्सा लिया. इस सम्मेलन में हिटलर ने प्रस्ताव रखा कि उसे भी अन्य देशों की तरह शस्त्रीकरण का अधिकार दिया जाना चाहिए अथवा सभी राष्ट्रों को जर्मनी के समान नि:शस्त्रीकरण का पालन करना चाहिए. हिटलर के इस प्रस्ताव का जर्मनी ने विरोध किया. फ्रांस के विरोध के कारण जर्मनी 14 अक्टूबर 1933 ई. को नि:शस्त्रीकरण सम्मेलन तथा राष्ट्र संघ से अलग हो गया.

2. जर्मनी-पोलैंड समझौता

पोलैंड और जर्मनी के बीच में संबंध पहले अच्छे नहीं थे, लेकिन दोनों देशों की अपनी-अपनी मजबूरियां थी। अतः इसी मजबूरियों ने  दोनों को आपस में समझौते करने पर मजबूर कर दिया. भौगोलिक स्थिति के अनुसार पोलैंड जर्मनी और रूस के सीमा के बीच स्थित था. ऐसी स्थिति में पोलैंड को डर था कि यदि रूस और जर्मनी में कभी संघर्ष होती है तो वह दोनों के बीच में पिस सकता है. उसकी मदद करने वाला एकमात्र मित्र फ्रांस भी उससे काफी दूर था. इधर जर्मनी भी यूरोपीय राष्ट्रों को दिखाना चाहता था कि वह शांति का समर्थक है. अत: उसने पोलैंड के साथ 23 जनवरी 1934 ई. को 10 वर्षों के लिए अनाक्रमण समझौता किया. इस समझौते के तहत जर्मनी ने पोलैंड को आश्वासन दिया कि वह 10 वर्ष तक अपनी पूर्वी सीमा में परिवर्तन की मांग ना उठाएगा. दोनों इस बात पर भी राजी हुए कि वे एक-दूसरे पर कभी आक्रमण नहीं करेंगे.

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3. 1933 ई का समझौता

हिटलर ने इटली के शासक मुसोलिनी के द्वारा प्रस्ताव रखने पर वर्ष 1933 ई. में इंग्लैंड, फ्रांस और इटली के साथ शांति समझौता किया. इस समझौता के तहत उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वे कभी युद्ध नहीं करेंगे और शांति समझौते का पालन करेंगे. 

4. सार की प्राप्ति

सार, जर्मनी का एक क्षेत्र हुआ करता था जो कि वर्साय की संधि के अनुसार 15 वर्षों के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के संरक्षण में था. वर्ष 1935 को इस क्षेत्र पर जनमत संग्रह किया गया. इस जनमत संग्रह में लगभग 5 लाख मत पड़े. इस जनमत संग्रह में 90% से ज्यादा मत जर्मनी के पक्ष में पड़े. इस जनमत संग्रह में जर्मनी के जीतने  के कारण 1 मार्च 1935 ई. को यह क्षेत्र जर्मनी को दे दिया गया.

5. सैनिक सेवा में अनिवार्यता

हिटलर ने वर्साय संधि की धाराओं को तोड़ते हुए 16 मार्च 1935 ई. को प्रत्येक जर्मन नागरिकों के लिए देश के प्रत्येक नागरिकों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य करने की घोषणा की. उसने यह घोषणा भी की, कि “जर्मनी अब अपने को वर्साय की संधि की धाराओं से मुक्त मानता है. जर्मनी की शांति कालीन सैनिकों की संख्या 5 लाख 50 हजार होगी और जर्मनी में प्रत्येक नागरिकों के लिए अनिवार्य सैनिक सेवा लागू की जाएगी.”

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6. स्ट्रेसा सम्मलेन

जर्मनी के द्वारा अपने नागरिकों के लिए अनिवार्य सैनिक सेवा लागू कर दिए जाने के कारण यूरोपीय देशों को काफी चिंता होने लगी और उनके बीच हिटलर के इस कदम के खिलाफ तीव्र प्रतिक्रिया हुई. अतः उन्होंने इस विषय पर चर्चा करने के लिए अप्रैल, 1935 ई. में फ्रांस, इंग्लैंड और इटली के द्वारा सिरसा में सम्मेलन बुलाया गया.  इस सम्मेलन में हिटलर के इस कदम की भारी आलोचना की गई. लेकिन स्ट्रेसा के इस सम्मेलन से जर्मनी पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि वह इस वक़्त इंग्लैंड के साथ नौसैनिक वार्ता भी कर रहा था.

7. जर्मन-इंग्लैंड नौसेना समझौता

हिटलर ने अपनी सूझबूझ का इस्तेमाल करते हुए जून 1935 ई को इंग्लैंड के साथ नौसेना समझौता कर लिया. इस समझौता के द्वारा जर्मनी को इंग्लैंड की अपेक्षा 35% नौसेना रखने का अधिकार मिल गया. इस समझौता के अनुसार यह भी तय किया गया कि वह अपने पड़ोसियों के बराबर वायुसेना रख सकता है. इस संधि से वर्साय की संधि काफी कमजोर हो गई और जर्मनी को काफी बल मिला. इस संधि के कारण स्ट्रेसा का सम्मेलन भी बेकार सिद्ध हुआ.

8. राइन क्षेत्र का सैन्यकरण

वर्साय की संधि के अनुसार राइन का क्षेत्र विसैन्यीकृत घोषित कर दिया गया था. लेकिन हिटलर इस क्षेत्र में अपनी सेनाएं भेजना चाहता था. इस दौरान 1935 ई. में इटली ने जब अबीसीनिया पर आक्रमण किया तो इसके विरोध में फ्रांस और इंग्लैंड ने इटली पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. किंतु इस समय जर्मनी ने इटली की सहायता की और मुसोलिनी से मित्रता कर ली. इसके बाद 7 मार्च 1936 ई. को हिटलर ने भी राइन क्षेत्र में अपनी सेनाएं भेज दिया और राइनलैंड पर अधिकार कर लिया. हिटलर के इस कदम का इंग्लैंड और फ्रांस ने कोई विरोध नहीं किए. हिटलर के इस कार्य का बहुत ही बड़े दूरगामी परिणाम हुए. इससे फ्रांस की कमजोर स्थिति दुनिआ के सामने आ गई और उसके मित्रों ने उसका साथ छोड़ दिया. उसका दोस्त बेल्जियम भी तटस्थ हो गया. हिटलर के इस कदम से राष्ट्र संघ, वर्साय की संधि और लोकार्नो संधियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया.

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9. रोम-बर्लिन-टोक्यो धुरी की स्थापना

अबीसीनिया पर इटली के शासक मुसोलिनी के द्वारा आक्रमण करने से उसे न सिर्फ हिटलर की सराहना मिली बल्कि उन को आर्थिक सहायता भी मिली. हिटलर के इस कदम ने मुसोलिनी और हिटलर की दोस्ती को मजबूत बना दिया. इस कारण 21 अक्टूबर 1936 ई. को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने एक समझौता किया. इस समझौते के अनुसार जर्मनी ने अबीसीनिया पर इटली के अधिकार को स्वीकार किया. इधर इटली ने भी स्वीकार किया कि जर्मनी ऑस्ट्रिया पर अधिकार कर सकता है. इस प्रकार हिटलर को इटली के रूप में एक दोस्त मिल गया. लेकिन साथ ही उसे एक ऐसे दोस्त की जरूरत थी जो रूस के खतरे में उसका साथ दें. अत: उसे इसके लिए जापान से बेहतर विकल्प कोई नहीं मिला. उसने 25 नवंबर 1936 ई. को रूस के खिलाफ जापान से संधि कर ली. यह संधि एंटी कमिन्टर्न पैक्ट के नाम से जानी जाती है. इस प्रकार यूरोप के राष्ट्र दो धुरी में बंट गए. एक ओर इंग्लैंड, फ्रांस और रूस तो दूसरी ओर जर्मनी, इटली और जापान थे.

10. ऑस्ट्रिया पर अधिकार

इटली के साथ समझौता होते ही हिटलर की नजर ऑस्ट्रिया पर थी. वह ऑस्ट्रिया अधिकार करना था. हालांकि हिटलर पहले भी 1934 में ऑस्ट्रिया पर अधिकार करने की कोशिश की थी. उस वक्त जब हिटलर ने अपनी सेना ऑस्ट्रिया पर अधिकार करने भेजी तो इसके विरोध में इटली ने ब्रेनर दरें पर अपनी सेना भेज दिया था. इस कारण हिटलर को सफलता नहीं मिली थी. लेकिन इस समय इटली और जर्मनी में मित्रता हो चुकी थी और दोनों के बीच हुए संधि के तहत इटली ने जर्मनी को ऑस्ट्रिया पर अधिकार करने का अधिकार दे दिया. इस कारण 13 मार्च, 1938 ई. को हिटलर की फौज ने ऑस्ट्रिया पर धावा बोल दिया और उस पर अपना अधिकार कर लिया. हिटलर ने ऑस्ट्रिया पर अधिकार करने के बाद उसे जर्मन साम्राज्य का एक प्रांत के रूप में घोषित कर दिया.

11. चेकोस्लोवाकिया को हस्तगत करना

ऑस्ट्रेलिया पर अधिकार करने के बाद हिटलर का अगला निशाना चेकोस्लोवाकिया था. चेकोस्लोवाकिया में लगभग एक करोड़ 50 लाख नागरिक थे, जिसमें 16% स्लोवाक, 50% चेक्स, 22% जर्मन और 4% हंगेरियन तथा 4% प्रतिशत रुमानियाँ नागरिक थे.  इन  नागरिकों में आपसी मतभेद की भावना काफी बढ़ती जा रही थी. गैर चेक्स जातियां चाहती थी कि उन्हें भी सरकारी पदों में बराबरी का दर्जा प्राप्त हो. इधर हंगेरियन चाहते थे कि वे हंगरी में मिले, जर्मन चाहते थे सीमांत प्रदेशों को जर्मन में मिला दिया जाए. अतः इस मतभेद का फायदा हिटलर ने उठाया. उसने जर्मनों को विद्रोह के लिए भड़काया. इस कारण चेकोस्लोवाकिया और जर्मनी के बीच तनाव का वातावरण पैदा हो गया. लेकिन इस वातावरण को देखकर इंग्लॅण्ड ने हस्तक्षेप किया और और उनके बीच एक समझौता कराया. इस समझौते को म्यूनिख समझौता कहा जाता है. इस समझौता के तहत स्यूडेटनलैंड पर जर्मनी का अधिकार हो गया. इंग्लैंड व फ्रांस चेकोस्लोवाकिया की सीमाओं का रक्षा करने  का आश्वासन दिया. हिटलर ने स्वीकार किया कि वह अल्पसंख्यकों के समस्याओं का समाधान करेगा और उसने वचन दिया कि स्यूडेटनलैंड यूरोप में उसका अंतिम सीमा है.

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इस संधि के जर्मनी के हौसले को और बढ़ा दिया. उसने स्लोवाकों को भी स्वतंत्र राज्य की मांग करने के लिए भड़काया. हिटलर के उकसाने पर जनता ने राष्ट्रपति डॉ हाशा पर इतना दबाव डाला कि उसे चेकोस्लोवाकिया को जर्मनी में मिलाने की घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने पर मजबूर होना पड़ गया. हिटलर के इस कदम से इंग्लॅण्ड और फ्रांस उसके घोर शत्रु बन गए.

12. रूस से संधि

हिटलर पूर्वी यूरोप तथा मध्य यूरोप में अधिकार करने का इच्छुक था लेकिन वह जानता था कि उसके इस कदम का रूस विरोध कर सकता है. अतः उसने रूस के साथ अगस्त 1939 ई. में अनाक्रमण की संधि कर ली. इस संधि के तहत दोनों में तय किया कि दोनों एक-दूसरे पर आक्रमण नहीं करेंगे. इसके अलावा दोनों मित्र बना रहेंगे. पोलैंड को जर्मनी और रूस में बांटा जाएगा.  रूस, जर्मनी को युद्ध सामग्री व खाद्य सामग्री देगा. इस समझौते के कारण हिटलर की ताकत और बढ़ गई. उसे रूस की ओर से खतरा खत्म हो गया. अतः वह पोलैंड पर आक्रमण करने की तैयारी करने लगा. 1 सितंबर 1949 ई. को जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया. पोलैंड की ओर से इंग्लॅण्ड और फ्रांस के हस्तक्षेप करने के साथ ही द्वितीय विश्वयुद्ध का आगाज हो गया.

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