भक्ति आंदोलन के उदय के क्या कारण थे?

भक्ति आंदोलन

मध्यकाल में भक्ति आंदोलन बहुत तेजी से उभरता चला गया. सामान्य जनता तेजी से इस आंदोलन से जुड़ने लगी थी. भक्ति आंदोलन के परिणामस्वरूप लोगों के बीच आपसी नफरत, ईष्या-द्वेष आदि खत्म होकर परस्पर आपसी मेल-मिलाप और आपसी भाईचारे का वातावरण तैयार हो रहा था. इस आंदोलन के द्वारा लोगों को मूर्ति पूजा का विरोध करना, जात-पात का विरोध, हिंदु-मुस्लिम एकता पर बल तथा एक ईश्वर में विश्वास करना सिखाया जा रहा था. इस आंदोलन की सरलता से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोग जुड़ते जा रहे थे.

भक्ति आंदोलन के उदय

भक्ति आंदोलन के उत्पति के कारण (Reasons for the origin of Bhakti movement)

1. भक्ति मार्ग की सरलता

इस समय तक हिंदू धर्म का स्वरूप अत्यंत ही जटिल और हो गया था. धार्मिक कर्मकांड इतने महंगे हो गए थे कि जनसाधारण के लिए इनका पालन करना अत्यंत कठिन हो गया. इनके नियम भी काफी कठिन हो गए थे. पूजा-पांच के क्रियाओं को करना अब हर किसी के बस की बात नहीं थी. ऐसे में लोगों का मन भक्ति मार्ग की ओर मुड़ता चला गया क्योंकि भक्ति मार्ग अत्यंत सरलता और जटिलता से रहित था. अतः यह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय होता चला गया और जनसाधारण इनसे जुड़ते चले गए.
भक्ति आंदोलन के उदय

2. मुस्लिम आक्रमणकारी

मध्यकाल में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण किया. वे हिंदु मंदिरों को लूटते, इनको तोड़ते तथा मूर्तियों का विनाश कर डालते थे. ऐसी स्थिति में साधारण जनता के लिए मंदिरों में जाकर मूर्ति पूजा तथा उपासना करना अत्यंत कठिन हो गया. ऐसी स्थिति में वे भक्ति और उपासना के द्वारा ईश्वर को याद करते तथा मोक्ष प्राप्त करने की कोशिश करते. इसी करण उनका झुकाव धीरे-धीरे भक्ति मार्ग की ओर होता चला गया.
भक्ति आंदोलन के उदय

3. जटिल वर्ण व्यवस्था

हिन्दूओं में वर्ण व्यवस्था प्राचीन काल से ही प्रचलित थी. मध्यकाल आते-आते समय के साथ वर्ण व्यवस्था में और भी जटिलता बढ़ती चली गई. उच्च वर्ग के लोग खुद को श्रेष्ठ मानते थे और निम्न वर्ग के लोगों के साथ अत्याचार करते थे. इस कारण निम्न वर्ग के लोगों में काफी असंतोष था. इसी समय भक्ति आंदोलन ने सबके लिए अपने द्वार खोल दिए. इस आंदोलन में ऊंच-नीच जैसे भेदभाव का कोई स्थान नहीं था. अतः बड़ी संख्या में निम्न वर्ग के लोगों का झुकाव भक्ति मार्ग की ओर बढ़ती चली गई. 
भक्ति आंदोलन के उदय

4. क्रियात्मक शक्ति की नियोजन की आवश्यकता

मनुष्य एक कर्मियों प्राणी है. हर व्यक्ति अपनी शक्ति को किसी न किसी उपयोगी कार्य में लगाना चाहता है. पराधीनता में फंस जाने का हिंदू लोगों के कर्म प्रिय जीवन नष्ट हो गया. हिंदुओं ने इसी क्रियात्मक शक्ति को लगाने का इससे अच्छा अन्य उचित अवसर नहीं पाया. अतः उन्होंने अपनी क्रियात्मक शक्ति को लगाने के लिए अपना ध्यान ईश्वर की भजन की और लगाया.
भक्ति आंदोलन के उदय

5. समन्वय की भावना

हिंदू और मुस्लिम समुदाय लंबे समय तक एक साथ रह रहे थे. इसके कारण इन दोनों के बीच धार्मिक नफरत और ईर्ष्या-द्वेष बढ़ती जा रही थी. इससे आपसी सौहार्द और प्रेम बिगड़ता जा रहा था. भक्ति आंदोलन के आने के बाद दोनों जातियों ने इस बात को समझा और आपसी सद्भाव को जन्म देना आवश्यक समझा. इसके लिए भक्ति मार्ग से अच्छा कोई रास्ता नहीं था. इस कारण हिंदू तथा मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग भक्ति आंदोलन में जुड़ने लगे. इससे भक्ति आंदोलन को काफी बढ़ावा मिला.

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