सल्तनत कालीन आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए

सल्तनत कालीन आर्थिक दशा

दिल्ली सल्तनत की स्थापना के साथ ही सल्तनत कालीन आर्थिक दशा में काफी सुधर होने लगा. इसका मुख्य कारण उत्तर भारत के कृषि तथा उद्योग धंधों के क्षेत्र में काफी तेजी से परिवर्तन हुआ. लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने लगी. इस कारण उच्च वर्ग के लोग विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे. रहन-सहन में बदलाव होने से नई आवश्यकताएं पैदा हुई. इसी के साथ नए नए उद्योग-धंधों ने जन्म लिया. कुटीर उद्योग एवं कृषि गृह उद्योग का स्वरूप विकसित होने लगा. 

सल्तनत कालीन आर्थिक दशा

सल्तनत काल के प्रमुख उद्योग धंधे

1. वस्त्र उद्योग

सल्तनत काल में वस्त्र उद्योगों का काफी विकास हुआ. इस समय कपास के कोय से रूई तैयार करके सूत काता जाता था.  इस समय सूती वस्त्रों के अलावा ऊनी वस्त्र भी तैयार किए जाते थे. ऊन के लिए लोग भेड़ों का पालन किया करते थे. उच्च वर्ग के लोग ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे. उच्च कोटी के ऊन तथा फर का आयात विदेशों से भी किया जाता था. इसके अतिरिक्त रेशमी वस्त्र उद्योग का भी काफी विकास हुआ. रेशमी वस्त्र बनाने के लिए रेशम का आयात किया जाता था.  बंगाल में भी रेशम के कीड़े पाले जाते थे. वस्त्रों की कढ़ाई, रंगाई, छपाई आदि के लिए लगभग हर शहरों पर उद्योग लगे हुए थे. भारत में बने वस्त्र उच्च गुणवत्ता की होती थी. इस कारण इनका निर्यात विदेशों तक किया जाता था. गरीब वर्ग के लोग मोटे कपड़े से बने वस्त्र पहनते थे. वहीं धनी वर्ग के लोग महीन, मुलायम, मखमल तथा विभिन्न प्रकार के ऊनी कपड़े पहनते थे. 

गुजरात और बंगाल में बंदरगाह की सुविधाएं थी. यही कारण है इन स्थानों से भारत में बने वस्त्रों का निर्यात विदेशों तक किया जाता था. खम्भात का  रेशमी वस्त्र, बंगाल की मलमल, जरी के काम की टोपियां तथा रेशम के रूमाल काफी प्रसिद्ध थे. गुजरात पटोला एवं रेशम के कपड़ों और सोने की तार के लिए काफी प्रसिद्ध थे. दरियों, गिलाफ, चादरों, कालीन आदि के लिए गुजरात काफी प्रसिद्ध था. 

2. चीनी उद्योग

सल्तनत काल में लगभग पूरे भारत में प्रचूर मात्रा में गन्ने की खेती होती थी. इस कारण इस काल में चीनी उद्योग काफी विकसित अवस्था में था. गन्ने से गुड़, खाण्ड तथा चीनी बनाई जाती थी. बंगाल में चीनी का उत्पादन इतनी ज्यादा होती थी कि उसका निर्यात भी किया जाता था. इसके अलावा ताड़ से भी शक्कर बनाया जाता था. हालांकि गन्ने की तुलना में ये कम होती थी.

सल्तनत कालीन आर्थिक दशा

3. कागज उद्योग

सल्तनत काम में प्रशासन के द्वारा कागज के इस्तेमाल बढ़ जाने के कारण कागज़ की मांग में काफी वृद्धि हो गई. शाही फरमान, विभिन्न विभागों का हिसाब-किताब, भू-राजस्व तथा प्रशासनिक आदेश आदि के लिए कागजों का इस्तेमाल बढ़ता चला गया. इससे कागजों की मांग में वृद्धि होती चली गई. इसका परिणाम ये हुआ कि कागजों का उत्पादन में भी काफी वृद्धि हुई. 16 वीं शताब्दी तक भारत में कागज उद्योग पूर्ण रूप से विकसित हो चुका था. 

4. चमड़ा उद्योग

सल्तनत  काल में पानी निकालने के लिए चमड़े की मोट, घोड़े की जीन, तलवार रखने के लिए म्यान, किताब रखने के लिए जिल्द, तथा जूते आदि बनाने के लिए चमड़े की मांग काफी बढ़ी. इस कारण सल्तनत काम में चमड़ा उद्योग काफी विकसित हुआ. चमड़े से बने वस्तुओं की मांग की पूर्ति करने के लिए चमड़े का निर्यात अरब देशों से किया जाने लगा तथा बनी हुई वस्तुओं को विदेशों तक निर्यात किया जाता था. चमड़े पर पशु-पक्षियों की सुंदर चित्रकारी भी की जाती थी. सजावटी के दृष्टिकोण से बाजार में इनकी काफी मांग थी.

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5. इत्र उद्योग

सल्तनत काल में इत्र और सुगंधित तेलों का काफी प्रचलन था. उच्च और अभिजीत वर्ग के लोग में इनका बहुत ही ज्यादा प्रचलित था. यही कारण है कि इत्र उद्योग भी सल्तनत काम में काफी विकसित हुआ. फूल के बागों के निकट ही इत्र उद्योगों को लगाया गया. कनौज, जीनपुर, गाजीपुर आदि स्थान इत्र उद्योग के लिए काफी प्रसिद्ध थे. इन उद्योगों में विभिन्न प्रकार के इत्र तैयार किए जाते थे. 

6. आभूषण उद्योग

सल्तनत काल में श्रृंगार के लिए आभूषणों की काफी मांग थी. अतः इन उद्योगों का भी काफी विकास हुआ. इस काल में मुख्य रूप से हाथी दांत और मूंगे के आभूषण बनाए जाते थे. गुजरात के मूंगे का विदेश तक निर्यात किया जाता था. हाथी दांत के आभूषण काफी महंगे होते थे. इसीलिए इनका निर्माण बहुत कम स्थानों में किया जाता था. आभूषण के रूप में चूड़ियां, कड़े आदि का निर्माण होता था. इसके अलावा तलवार की मूठ, शतरंज की मोहरें आदि का भी उत्पादन किया जाता था. इन वस्तुओं का निर्यात भी किया जाता था.

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7. ईंट-पत्थर उद्योग

इस काल में भवनों, स्तुपों और मंदिरों का निर्माण काफी तेजी से होने लगा. नतीजतन इनके निर्माण में प्रयुक्त होने वाले सामानों जैसे कि ईंट-पत्थरों का काफी तेजी से मांग बढ़ने लगी. भवनों के निर्माण करने वाले शिल्पकारों को भी सुल्तानों के द्वारा काफी प्रोत्साहन मिलता गया. इसके अलावा निर्माण के क्षेत्र में चूने तथा गारे के प्रयोग ने इस उद्योग को काफी प्रोत्साहन मिला.

8. मदिरा उद्योग

इस काल में मदिरा उद्योग भी काफी विकसित हुई. इस काल में शक्कर, जौ, चावल तथा महुआ से शराब बनाई जाती थी. ताड़ के फलों तथा नारियल पानी से भी शराब बनाई जाती थी. मदिरा के सेवन ज्यादातर उच्च वर्ग के लोगों में प्रचलित था.

9. तेल उद्योग

इस काम में तेल उद्योग भी काफी विकसित थी. तिलहन की पैदावार बहुत अधिक मात्रा में होती थी. इस कारण लगभग हर गांव में इनसे तेल निकाली जाती थी. इसके अलावा तिल, सरसों और करदा से भी तेल निकाला जाता था.

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10. धातु उद्योग

सल्तनत काल में धातु उद्योग का काफी विकास हुआ. इन उद्योगों में युद्ध के सामान जैसे कि तलवार, ढाल, भाला, तीर-धनुष, कवच आदि का बड़े पैमाने पर निर्माण होता था. इसके अलावा छोटी तोपें, रथों के हिस्से, घोड़े के नाल आदि भी बनाए जाते थे. युद्ध के सामान के अलावा घरेलू इस्तेमाल में काम आने वाली वस्तुएं जैसे कि बर्तन, कृषि उपकरण आदि भी बनाए जाते थे. 

सल्तनत काल में लोहे के अलावा तांबे, सोने, चांदी आदि से संबंधित उद्योगों का काफी विकास हुआ. लोगों में सोने, चांदी, तांबे से बने आभूषणों के इस्तेमाल बढ़ जाने के कारण इनका उत्पादन भी काफी तेजी से हुआ. धातु से बने मुद्रा का भी प्रचलन काफी तेजी से हुआ.

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