सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए

सिंधु घाटी सभ्यता

बहुत से भारतीय इतिहासकारों ने सिंधु घाटी सभ्यता का वर्णन अपनी रचनाओं में विस्तारपूर्वक की है. प्राचीन भारत के इतिहास के अध्ययन के दृष्टिकोण से सिंधु घाटी सभ्यता भारतीय इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है. भारतीय इतिहास में इसकी महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस सभ्यता की खोज से पहले मौर्य काल से पहले की पुरातात्विक सामग्री के विषय में अत्यंत अल्प जानकारियां उपलब्ध थी. लेकिन इस सभ्यता की खोज ने प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन करने के रास्ते खोल दिए. यह सभ्यता मिश्र, मेसोपोटामिया आदि की सभ्यताओं के समान विकसित एवं प्राचीन तथा कई क्षेत्रों में तो उससे भी अधिक विशिष्ट थी. सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है.
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार पूर्वक वर्णन

सिंधु घाटी सभ्यता की खोज से पहले यह समझा जाता था कि भारत की सबसे प्राचीनतम सभ्यता आर्यों की वैदिक सभ्यता है, किंतु इस सभ्यता की खोज ने इस धारणा को गलत सिद्ध कर दिया. 1921 ई. में राय बहादुर साहनी ने हड़प्पा नामक स्थान पर सर्वप्रथम सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों का पता लगाया. सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष ज्यादातर सिंधु नदी घाटी के विस्तृत भू-भाग में पाए गए. इस भू-भाग का ज्यादातर हिस्सा आज पाकिस्तान में स्थित है. इसके एक वर्ष बाद 1922 ई. में राखल दास बनर्जी ने हड़प्पा से 640 किलोमीटर दूर स्थित मोहनजोदड़ो में उत्खनन के द्वारा एक भव्य नगर के अवशेष प्राप्त किए. मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ मृतकों का टीला होता है. इसके पश्चात भारतीय पुरातत्व विभाग ने कई अन्य जगहों पर उत्खनन का कार्य किए. इन उत्खननों  के परिणामस्वरूप हड़प्पा सभ्यता से मिलती-जुलती बहुत से अवशेष प्राप्त हुए. अब तक सिंधु घाटी सभ्यता से मिलती-जुलती बहुत से अवशेष गंगा-यमुना तथा ताप्ती-नर्मदा के मुहानों  से प्राप्त हो चुके हैं.

सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार पूर्वक वर्णन

सिंधु घाटी सभ्यता से मिलती-जुलती अवशेषों का विभिन्न स्थानों से प्राप्त होने से यह स्पष्ट हो गया कि ये सभ्यता सिर्फ सिंधु सभ्यता क्षेत्र एवं मोहनजोदड़ो तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि इसका विस्तार दूर-दूर के क्षेत्र तक फैली हुई थी. सिंधु घाटी सभ्यता मुख्य रूप से उन नदी घाटी के मुहानों पर विकसित हुई जहां खेती योग्य पानी की उपलब्धता प्रचुर मात्रा में होते थे. इसके अलावा इस सभ्यता के लोगों के द्वारा जल मार्गों का इस्तेमाल दूर-दूर के अन्य सभ्यताओं के साथ व्यापारिक रिश्ते बनाने के लिए भी किए जाते थे. हड़प्पा सभ्यता से संबंधित प्रारंभिक जानकारी 1826 ई. में चार्ल्स मैसन ने दी थी. भारत में पुरातत्व के जनक माने जाने वाले जनरल कनिंघम ने 1853 ई. तथा 1873 ई. में दो बार हड़प्पा का सर्वेक्षण कराया था और कुछ महत्वपूर्ण पुरातात्विक वस्तुओं की खोज की. हड़प्पा सभ्यता से संबंधित प्रारंभिक जानकारी 1826 ई. में चार्ल्स मैसन ने दी थी. हड़प्पा की सर्वाधिक महत्वपूर्ण खुदाई 1946 ई. में सर मार्टीमर ह्वीलर के नेतृत्व में की गई थी.

सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार पूर्वक वर्णन

हड़प्पा सभ्यता अपने समकालीन सभ्यताओं की तुलना में अधिक विस्तृत है. यह उत्तर से दक्षिण तक 1100 किलोमीटर चौड़े तथा पूर्व से पश्चिम तक 1600 किलोमीटर भूभाग में फैली हुई है. एक ही सभ्यता के अंग होने के बावजूद हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख नगर मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा नगर एक दूसरे से लगभग 640 किलोमीटर दूर पर स्थित है. इसी बात से इसके विस्तृत होने का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. वर्तमान समय में हड़प्पा सभ्यता के अवशेष भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पाए जा चुके हैं. इन क्षेत्रों में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, लोथल, धौलागिरी सिंध, बलूचिस्तान आदि प्रमुख हैं. राजस्थान के कालीबंगा नामक स्थान में भी सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े बहुत से अवशेष प्राप्त हुए हैं. इन अवशेषों में मुख्य रूप से पत्थर की मूर्ति, मिट्टी की चूड़ियाँ, मिट्टी के बर्तन, स्नानागार, कुएं, अग्निकुंड आदि प्राप्त हुए. इस स्थान की खोज 1942 ई. में स्टाइन ने की थी. इसके अलावा अहमदाबाद के लोथल नामक स्थान में चूड़ियां, पत्थरों के आभूषण, लाल एवं काले रंग के मिट्टी के बर्तन के अवशेष प्राप्त हुए हैं. इन बर्तन के अवशेषों पर कलाकृतियां बनी हुई है. इस नगर में नालियों की बहुत अच्छी व्यवस्था थी.

सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार पूर्वक वर्णन

सिंधु घाटी सभ्यता के खोज के बाद यह स्पष्ट हो गया कि प्राचीन काल में भारतीय सभ्यता भी एक महान सभ्यता हुआ करती थी. यह स्पष्ट हो चुका है कि ये मिस्र और मेसोपोटामिया जैसे प्राचीन सभ्यताओं की तुलना में कई मायनों में श्रेष्ठ भी थी. इसके बाद यह संभावना जताई जा रही है कि प्राचीन भारत के इतिहास में इस प्रकार के और भी महान सभ्यताएं रही होगी जिन्हें अभी खोजना बाकी रह गया है.

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