इतिहास लेखन में अभिलेखों का क्या महत्व है?

इतिहास लेखन

किसी भी साम्राज्य, समुदाय या लोगों से सम्बन्धी इतिहास लेखन के लिए हमें उनसे संबंधित विभिन्न साक्ष्यों की जरूरत पड़ती है. इन साक्ष्यों में मुख्य रूप से प्राचीन धार्मिक तथा ऐतिहासिक ग्रंथ, खुदाई से प्राप्त वस्तुओं तथा भवनों के अवशेष, प्राचीन सिक्के तथा अभिलेख आदि आते हैं.

इतिहास लेखन में अभिलेखों का महत्व

इतिहास लेखन में अभिलेखों का बहुत ही बड़ा महत्व है. शिलाखंडों, मंदिर की दीवारों, कलाकृतियों, मूर्तियों तथा ताम्रपत्रों पर लिखी हुई जानकारियों को ही अभिलेख कहा जाता है. अभिलेखों में लिखी जानकारियां छेड़-छाड़ करके किसी भी सूरत में बदला नहीं जा सकती. इन पर हुए छेड़-छाड़ अथवा बदलाव की कोशिशों को आसानी से पहचाना जा सकता है. यही कारण है कि इतिहास लेखन के दृष्टिकोण से अभिलेख अन्य साक्ष्यों की तुलना में अधिक विश्वासनीय होते हैं. अभिलेखों से किसी भी देश की तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक स्थिति पर व्यापक प्रकाश पड़ता है. इन अभिलेखों में मुख्य रूप से तत्कालीन राजा की जानकारियां, साम्राज्य विस्तार, विजय स्मारक, भूमि संबंधित जानकारियां तथा लोगों के अधिकार संबंधित बातें लिखी हुई होती है. अभिलेखों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है- शासकों के अभिलेख तथा सामान्य व्यक्तियों के अभिलेख.

इतिहास लेखन में अभिलेखों का महत्व

१. शासकों के अभिलेख

प्राचीन काल में शासकों के द्वारा समय-समय पर अनेक अभिलेखों को को लिखवाया गया है. शासकों के अभिलेख मुख्यतया राजा के आदेश पर राज कवियों के द्वारा लिखी जाती थी. इस प्रकार के अभिलेखों में मुख्य रूप से राजा के आदेश, विजय स्मारक तथा भूमि अनुदान पत्र होते हैं. सम्राटों के द्वारा लिखवाए गए अभिलेखों में सम्राट चंद्रगुप्त का प्रयाग में अशोक स्तंभ पर उत्कीर्ण अभिलेख, कलिंग राजा खारवेल की हाथीगुंफ अभिलेख, गौतमी बालश्री कर नासिक अभिलेख, राजा भोज का ग्वालियर अभिलेख, रुद्रदामन का गिरनार अभिलेख, चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय का एहोल अभिलेख, स्कंदगुप्त का भीतरी स्तंभ लेख और नासिक अभिलेख तथा बंगाल के शासक विजय सेन का देवपाड़ा अभिलेख, इसके अलावा सम्राट अशोक के द्वारा लिखवाए गए अभिलेख  प्रमुख हैं.

इतिहास लेखन में अभिलेखों का महत्व

सभी सम्राटों के अभिलेखों में सबसे प्रमुख स्थान सम्राट अशोक के स्तंभ और शिलालेखों के हैं. सम्राट अशोक के अभिलेख भारत के विभिन्न स्थानों में पाए गए हैं. अशोक के ज्यादातर अभिलेख ब्राह्मी अथवा खरोष्ठी लिपि में लिखी पाई गई है. सम्राट अशोक के अभिलेखों से हमें न केवल उनके महान विचारों और व्यक्तित्व की जानकारी मिलती है बल्कि तत्कालीन भारतीय भाषा और लिपि उनकी भी जानकारी मिलती है. भूमि अनुदान पत्र अधिकतर ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण मिलते हैं. अनुदान पत्र में भूमि खंडों की सीमाओं के साथ-साथ समय का भी जिक्र पाई जाती है. बहुत से अनुदान पत्रों पर लिपि के साथ-साथ तत्कालीन राजा, उसके साम्राज्य तथा उसके शासनकाल की भी जानकारियां मिलती है. राजा के द्वारा लिखे गए अभिलेखों से हमें तत्कालीन शासकों के नाम, कार्यकाल, साम्राज्य के विस्तार, आर्थिक तथा राजनीतिक तथा धार्मिक स्थिति का भी पता चलता है.

इतिहास लेखन में अभिलेखों का महत्व

सामान्य व्यक्तियों के अभिलेख

सामान्य व्यक्तियों  के द्वारा लिखे गए बहुत से अभिलेख प्राप्त हुए हैं. इस प्रकार की निजी अभिलेख मुख्यतया मंदिर, मंदिर की दीवारों और मूर्तियों पर उत्कीर्ण पाए जाते हैं. इन अभिलेखों से मंदिरों के निर्माण तथा मूर्ति प्रतिष्ठान के समय का पता चलता है. इस प्रकार के अभिलेखों से कालखंड, तत्कालीन स्थापत्य कला, मूर्तिकला तथा भाषाओं के विकास का पता चलता है. इसके अलावा अभिलेखों से तत्कालीन शासकों के शासनकाल, उसके पदाधिकारियों, तत्कालीन कर व्यवस्था तथा राजनीतिक व्यवस्था का पता चलता है.

इतिहास लेखन में अभिलेखों का महत्व

उपरोक्त बातों से स्पष्ट है कि इतिहास की लेखन के लिए अभिलेखों का बहुत बड़ा महत्व है. सातवाहन-शासकों का संपूर्ण इतिहास अभिलेखों के मदद से ही लिखी गई है. इस प्रकार पल्लव, चालुक्य, राष्ट्रकूट, चोल और पांडेय राजवंशों के इतिहास को जानने में भी अभिलेखों ने बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान निभाई. विदेशों से प्राप्त अभिलेखों से भी प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी मिलती है. एशिया माइनर में  बोगजकोई नामक स्थान पर प्राप्त 1400 ईसा पूर्व का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है. इस अभिलेख से प्राचीन भारतीय इतिहास पर व्यापक प्रकाश पड़ता है.

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इन्हें भी पढ़ें:

  1. सम्राट अशोक के प्रारंभिक जीवन तथा कलिंग विजय का वर्णन करें
  2. मौर्य कला की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए
  3. अशोक के धम्म से आप क्या समझते हैं? इसके प्रचार के लिए उसने क्या कदम उठाए?

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