कनिष्क कौन था?

कनिष्क की सैन्य उपलब्धियां
1. पार्थिया से युद्ध
चीनी स्रोतों से ज्ञात होता है कि कनिष्क और पार्थिया के बीच युद्ध हुई थी. चीनी साहित्य के अनुसार पार्थिया के शासक ने कनिष्क पर आक्रमण किया था. पार्थिया के द्वारा कुषाण साम्राज्य पर आक्रमण करने के दो मुख्य कारण थे- पहला कारण बैक्ट्रिया पर कनिष्क के द्वारा अधिकार करना था. बैक्र्टिया व्यापारिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था. इसी कारण पार्थिया भी बैक्ट्रिया पर अधिकार करना चाहता था. दूसरा कारण यह है कि एरियाना प्रदेश पर पहले पार्थिया का अधिकार था, लेकिन बाद में कुषाणों ने इस पर अधिकार कर लिया. अतः पार्थिया का शासक एरियाना प्रदेश पर पुनः अपना अधिकार चाहता था. स्रोतों के अनुसार पार्थिया और कनिष्क के बीच हुए युद्ध में कनिष्क को जीत हासिल हुई.
2. रोम साम्राज्य से संबंध
कनिष्ठ और रोम साम्राज्य के बीच मित्रता पूर्वक संबंध थे. इसका मुख्य कारण था रोम और कनिष्क दोनों की शत्रुता पार्थिया से थी. अतः इस वजह से कुषाण साम्राज्य और रोम के बीच संबंध मजबूत होती चली गई. दोनों परस्पर दूतों का आदान-प्रदान किए.
3. चीन से युद्ध
चीन में कनिष्क के समकालीन हान वंश का शासक शासन कर रहा था. हान शासक अत्यंत शक्तिशाली था. उसके सेनापति पान-चाओ ने खेतान, काशगर, कुचा आदि स्थानों पर विजय प्राप्त करके संपूर्ण चीनी तुर्किस्तान को अपने अधिकार में ले लिया था. इस प्रकार हान साम्राज्य की सीमाएं कुषाण साम्राज्य की सीमाओं से मिलने लगी थी. चीनी साहित्य के अनुसार कनिष्क ने अपने साम्राज्य की सुरक्षा हेतु चीनी सम्राट कि यहां अपना एक दूत भेजकर चीनी राजकुमार से विवाह करने की इच्छा प्रकट की. पान-चाओ ने इसे चीनी सम्राट का अपमान समझा और उस दूत को बंदी बना लिया. इसकी सूचना मिलने पर कनिष्क 70 हजार अश्वरोहियों की सेना चीनी साम्राज्य पर आक्रमण करने के लिए भेजी, लेकिन खेतान तक पहुंचते-पहुंचते खराब मौसम के कारण सेना का एक बहुत बड़ा भाग नष्ट हो गया. अतः पान-चाओ ने उसे आसानी से हरा दिया. इसके बाद कनिष्क को प्रतिवर्ष चीनी शासक को कर देने पर विवश होना पड़ा. इस पराजय की पुष्टि एक किवदंती से भी होती जिसके अनुसार कनिष्क ने कहा था मैंने तीनों दिशाओं को अपने अधीन कर लिया. केवल उत्तरी प्रदेश आत्मसमर्पण करने के लिए नहीं आया है. व्हेनसांग के वर्णन से पता चलता है कि कुछ समय पश्चात कनिष्क ने अपनी पराजय का बदला ले लिया, लेकिन इस पर भी कई विद्वानों में मतभेद है. बहुत से विद्वान इस मत को स्वीकार नहीं करते. इन विद्वानों का मानना है कि इस बात की जानकारी व्हेनसांग के अतिरिक्त किसी अन्य स्रोत में नहीं मिलती है. अतः कनिष्क विजय पर संदेह है.
कनिष्क का साम्राज्य विस्तार
कनिष्क ने अपने सैन्य विजय उनके द्वारा एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की थी. उसके साम्राज्य मध्य एशिया से सारनाथ तक विस्तृत था तथा पुरुषपुर (पेशावर) उसकी राजधानी थी. मध्य एशिया से सारनाथ तक विस्तृत उसके साम्राज्य में बहुत से प्रदेश उसके अधीन थे. कुछ इतिहासकारों के अनुसार कनिष्क ने चीनी सेनापति पान-चाओ को परास्त करके चीनी तुर्किस्तान के यारकंद, खेतान और काशगर पर अधिकार कर लिया था. बैक्ट्रिया पर भी उसने अधिकार कर लिया था. इसके अलावा अफगानिस्तान पर भी विजय प्राप्त की थी. चीनी स्रोतों के अनुसार गांधार पर भी कनिष्क का अधिकार था.
कल्हण के द्वारा रचित राजतरंगिणी के अनुसार कश्मीर पर भी उसने अपना अधिकार कर लिया था. सूई विहार अभिलेख के अनुसार सिंध पर भी कनिष्क का अधिकार था. इसके अलावा पंजाब, उत्तर प्रदेश बिहार व मगध आदि प्रदेशों पर भी उसका आधिपत्य था. इस बात की प्रमाण उन स्थानों में मिली कनिष्क की मुद्राओं, अभिलेखों, विभिन्न कलाकृतियों से पता चलता है. तिब्बती लेखकों के वर्णन से पता चलता है कि उसने पाटलिपुत्र पर भी आक्रमण कर लिया था और पाटलिपुत्र को जीतकर अश्वघोष को अपने साथ ले लिया था. अतः इस बात से यह निष्कर्ष निकलती की कनिष्क ने बिहार व मगध पर विजय प्राप्त की थी. पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के कुछ भागों में कुषाणों की मुद्राएं प्राप्त होने से इस बात पर बल मिलता है कि उसने बंगाल और उड़ीसा पर भी विजय प्राप्त की थी. मध्य प्रदेश के कुछ स्थानों में कनिष्क की मुद्राओं और मथुरा शैली की कुछ मूर्तियां मिलने के से यहां भी कुषाण साम्राज्य के अधिकार होने की बात की पुष्टि मिलती है. प्रकार स्पष्ट है कि कनिष्क का साम्राज्य पूर्व में बिहार से लेकर पश्चिम में खुरासान तक उत्तर में खेतान से लेकर दक्षिण में कोंकण तक विस्तृत था.
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