चंद्रगुप्त मौर्य
चंद्रगुप्त मौर्य, मौर्य साम्राज्य का संस्थापक था. चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की. उन्होंने 24 वर्ष के शासनकाल में उतनी सफलता प्राप्त की जितना किसी अन्य शासक ने नहीं की. उन्होंने न सिर्फ भारत को यूनानी आक्रमण से बचाया बल्कि उनके कब्जे से बहुत से प्रदेशों को आजाद किया. आगे चलकर सम्राट अशोक ने इस साम्राज्य की ख्याति चरम सीमा पर पहुंचाई. लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा स्थापित साम्राज्य के बदौलत ही सम्राट अशोक अपने साम्राज्य को और विस्तार कर सका.
चंद्रगुप्त मौर्य की सैन्य उपलब्धियाँ
1. मगध पर प्रथम आक्रमण
चंद्रगुप्त मौर्य के द्वारा मगध पर प्रथम आक्रमण किया गया. इसका जिक्र महावंश नामक एक ग्रंथ में किया गया है. इस ग्रंथ के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने सबसे पहले छोटे-छोटे नगरों और ग्रामों पर हमले करने शुरू किए. लेकिन वहां के लोगों ने चंद्रगुप्त मौर्य की सेना का डटकर सामना किया और उसको परास्त कर दिया. चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य किसी तरह भागने में सफल रहे और वे वेश बदलकर घूमते रहे. इसके पश्चात उन्होंने अपनी सेना का पुनर्गठन करके अपनी रणनीति में बदलाव किया. फिर उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से मगध पर हमले करना शुरू किए.
2. पंजाब पर अधिकार
चंद्रगुप्त मौर्य के द्वारा मगध पर अधिकार करने से योजना के अंतर्गत सबसे पहले उनको पंजाब पर अधिकार करना था. इस समय तक पंजाब में यूनानियों का अधिकार हो चुका था और उसके सीमान्त क्षेत्रों पर यूनानियों का प्रभाव था. अत: उन्होंने इस ओर अपना ध्यानाकर्षण किया. इसके लिए उन्होंने सबसे पहले उन्होंने विभिन्न योजनाओं पर काम करना शुरू कर दिया. पहली योजना के अनुसार उनको धन संग्रह करना, सेना का गठन करना, अन्य राजाओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाना, जनता का समर्थन प्राप्त आदि था. इसके बाद उन्होंने पंजाब पर हमला करके यूनानियों को परास्त कर उस पर अपना अधिकार कर लिया.
3. मगध पर दूसरा आक्रमण
पंजाब पर अधिकार करने के बाद उन्होंने अपनी सेना को और अधिक सुढृढ़ किया और पंजाब के प्रांतों पर हमले करके अपने विजय अभियान को आगे बढ़ाता चला गया. जैसे-जैसे छोटे-छोटे प्रदेश पर विजय प्राप्त करता जाता था. वहां अपनी सेनाओं को और सुदृढ़ करता. इस प्रकार धीरे-धीरे उन्होंने मगध पर कब्ज़ा करता चला गया. फिर उसने मगध की राजधानी पर हमला किया. इस भीषण युद्ध में चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध के राजा धनानंद को परास्त करने में सफल रहा और मगध को अपने नियंत्रण में ले लिया. इतिहासकारों के मुताबिक मगध पर आक्रमण करने के लिए प्रवर्तक नामक एक राजा ने चंद्रगुप्त मौर्य की मदद की. इसके बदले में उन्होंने प्रवर्तक को मगध का आधा राज्य देने का वचन दिया. इतिहासकारों के मुताबिक मगध विजय के बाद चंद्रगुप्त मौर्य ने एक विषकन्या की मदद से राजा प्रवर्तक की हत्या कर दी.
4. सेल्यूकस से युद्ध
मगध साम्राज्य पर अधिकार करने के बाद चंद्रगुप्त मौर्य एक विशाल साम्राज्य का शासक बन बन गया. इसके पश्चात उन्होंने उन प्रदेशों पर भी विजय प्राप्त की जहां सिकंदर ने अधिकार कर लिया था. वह अपने प्रधानमंत्री चाणक्य की कूटनीति व अपनी सैनिक क्षमता के बल पर अपने साम्राज्य के विस्तार हिमालय से दक्षिणापथ तथा बंगाल की खाड़ी से यमुना नदी तक विस्तृत कर लिया. जब चंद्रगुप्त अपने साम्राज्य के विस्तार कर रहा था तो इसी दौरान सिकंदर का सेनापति सेल्यूकस भी अपने साम्राज्य का विस्तार करने में लगा हुआ था. सेल्यूकस भी सिकंदर समान एक महत्वकांक्षी योद्धा था. उन्होंने सिकंदर के मृत्यु के पश्चात आजाद हुए क्षेत्रों को पुनः अपने अधीन में करने की कोशिश की. इन कोशिशों में उन्हें सफलता मिली. ऐसे में सेल्यूकस की सीमाएं बढ़ने लगी और सेल्यूकस के साम्राज्य और चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य की सीमाएं आपस में टकराने लगी. इसके पश्चात इन दोनों शक्तिशाली साम्राज्य उनके सेनाओं के बीच भीषण टकराव हुआ. इस संघर्ष में सेल्यूकस परास्त हो गया. इसके बाद चंद्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस के बीच में संधि हुई. इस संधि के परिणाम स्वरूप सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त मौर्य को अपने साम्राज्य के बहुत से भूभाग को देने पड़ गए. चंद्रगुप्त मौर्य ने भी सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार स्वरूप देखकर उनसे मित्रता पूर्ण संबंध बनाए. इतिहासकारों के मुताबिक सेल्यूकस ने भी चंद्रगुप्त मौर्य से वैवाहिक संबंध स्थापित किए. उन्होंने अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से कर दिया. इस प्रकार सेल्यूकस के परास्त होने के बाद भारत यूनानी आक्रमणकारियों के भय से मुक्त हो गया.
5. अन्य उपलब्धियां
इतिहासकारों का मानना है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने इसके अलावा और भी बड़े-बड़े विजय अभियानों पर हिस्सा लिया. उसने दक्षिण भारत कुछ हिस्सों तक अपने साम्राज्य विस्तार किया था. हालांकि उनके इस विजय अभियानों के बारे में विस्तृत जानकारी लिखित रूप में उपलब्ध नहीं है. जूनागढ़ के रुद्रदमन अभिलेख से पता चलता है कि वह सौराष्ट्र (गुजरात ) पर भी शासन करता था. इसी से अंदाजा लगाया जाता है कि सम्भवत: इसके बीच पड़नेवाले मालवा और अवन्ति जैसे प्रदेशों को भी अपने राज्य में मिला लिया होगा. चन्द्रगुप्त मौर्य के दक्षिण भारत के विजय की कुछ जानकारियां तमिल ग्रन्थ अहनामूर तथा मुरनानुरू तथा अशोक के अभिलेखों से मिलती है.
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सर आप भारतीय प्राचीन इतिहास को जानने के बारे में जानकारी दे दो