कुतुबुद्दीन ऐबक की समस्याएं और उपलब्धियां
मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत का शासक कुतुबुद्दीन ऐबक बना. कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारतीय साम्राज्य में एक नई राजवंश के नींव डाली. इस वंश को लोग गुलाम वंश के नाम से भी जानते है. हालांकि कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा भारतीय साम्राज्य की गद्दी को संभालने से पहले गुलामी की बेड़ी से मुक्त पा लिया गया था. वह ऐबक नामक तुर्क जाति से संबंधित था. बाल्यकाल से ही उसे विभिन्न स्थान में गुलामी का जीवन बिताना पड़ा था. कालांतर में वह मोहम्मद गोरी की सेना में गुलाम के रूप में शामिल हो गया. कुतुबुद्दीन ऐबक अपनी योग्यता और पराक्रम के बल पर मोहम्मद गोरी का विश्वास पात्र बन गया. धीरे-धीरे उसने मोहम्मद गोरी के प्रमुख प्रतिनिधि के रूप में जगह बना ली. मोहम्मद गोरी ने भी उसे अपना उत्तराधिकारी के रूप में एलान कर दिया गया. मोहम्मद गौरी के मृत्यु के पश्चात एक स्वतंत्र शासक बना.
मोहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद जैसे ही कुतुबुद्दीन ऐबक ने सिहासन की जिम्मेवारी संभाली तो उसके सामने बहुत से समस्याएं आ खड़ी हुई. इन समस्याओं का सामना किए बगैर शासन को सुचारू रूप से चलाना नामुमकिन था.
कुतुबुद्दीन ऐबक की समस्याएं
1. अमीरों की समस्या
जब कुतुबुद्दीन ऐबक राजगद्दी पर बैठा तो बहुत सारे अमीर लोग उसे अपना शासक के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते थे. कुतुबुद्दीन ऐबक एक गुलाम से शासक बना इसीलिएखिलजी सरदार जैसे लोग उसकी अधीनता में काम करना अपना अपमान समझते थे. इस प्रकार उनके विरोध के वजह से कुतुबुद्दीन ऐबक को बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.
2. हिंदू राज्य
जिस समय कुतुबुद्दीन ऐबक ने राज सिहासन संभाला उस समय चंदेल, गढ़वाल, प्रतिहार जैसे हिंदू राज्यों की शक्ति बढ़ती ही जा रही थी. उनकी बढ़ती ताकत कुतुबुद्दीन ऐबक के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई थी. अतः कुतुबुद्दीन ऐबक को अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिए इन राज्यों की बढ़ती शक्ति का दमन करना बहुत ही आवश्यक था.
3. सीमा की सुरक्षा की समस्या
कुतुबुद्दीन ऐबक के पड़ोसी साम्राज्य धीरे धीरे शक्तिशाली होते जा रहे थे ऐसे में कुतुबुद्दीन ऐबक के लिए अपने साम्राज्य की सीमाओं की सुरक्षा करना बहुत ही बड़ी चुनौती साबित हो रही थी.
कुतुबद्दीन ऐबक के चार वर्षों तक की अल्पकालीन समय के लिए शासन काल में साम्राज्य की सुरक्षा के लिए बहुत ही संघर्ष किया। उन्होंने इस दौरान बहुत सी उपलब्धियां हासिल की. दिल्ली सल्तनत के संस्थापक के रूप में
कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलब्धियां
1. यल्दौज के साथ संघर्ष
कुतुबुद्दीन ऐबक से सब पहला संघर्ष ताजुद्दीन यल्दौज के साथ संघर्ष करना पड़ा. मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद यल्दौज ने अपने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और गजनी का स्वतंत्र शासक बना. कालांतर में यल्दौज को गजनी छोड़कर भागना पड़ा. इसी का फ़ायदा उठाकर ऐबक 1208 ई में गजनी पर अधिकार कर लिया. लेकिन गजनी की जनता ने उसे स्वीकार करने से इंकार कर दिया. इसी वजह से ऐबक को गजनी छोड़ना पड़ गया. इसके बाद यल्दौज पुन: गजनी पर अधिकार कर लिया. हालांकि ऐबक यल्दौज के शासन को पूरी तरह ख़त्म नहीं कर पाया, पर उसके यल्दौज के शासन को विस्तार करने पर रोक जरूर लगा दी.
2. बंगाल विद्रोह
कुतुबुद्दीन ऐबक के शासनकाल में बिहार और बंगाल में लगातार विद्रोह हो रहे थे. इसी दौरान कुतुबुद्दीन ऐबक का पुत्र अलीमर्दान खां, लखनौती का शासक बन गया, लेकिन खिलजी सरदारों ने उसे बंदी बना लिया. अलीमर्दान खां किसी तरह भागकर अपने पिता के पास दिल्ली पहुंचा और मदद मांगी. इसके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक अपने दूत कैमाज रूमी को बंगाल भेजा.उसके प्रयत्नों खिलजी सरदार अलीमर्दान फिर से बंगाल का शासक बन गया.
3. सिंध तथा मालवा
मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद नासिरुद्दीन कुबाचा ने सिंध और मालवा के बहुत से क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया. कुतुबुद्दीन ऐबक भी सिंध तथा मालवा पर अधिकार करना चाहता था. लेकिन उसने महसूस किया की सैन्य बल से नसुरुद्दीन कुबाचा को हरा पाना मुश्किल है. अत: उसने कूटनीति का सहारा लिया. उसने अपनी बहन की शादी नसीरुद्दीन दिया. इस प्रकार उसने सिंध और मालवा से लगती सीमा को सुरक्षित किया और अपना पूरा ध्यान बंगाल की स्थिति को सुधारने में लगा दिया.
इस प्रकार उसने वैवाहिक सम्बन्ध और कूटनीति की सहारा लेकर उसने अपनी सीमाओं को सुरक्षित रकने की कोशिश की. वह सिर्फ चार वर्षों तक ही शासन कर सका. इस दौरान वह विभिन्न प्रकार के समस्याओं से घिरा रहा. 1210 ई में लाहौर में पोलो खेलते समय घोड़े से गिरकर उसकी मृत्यु हो गई.
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Dilhi saltanat ke Uday me kutubuddin ebak ke yogdan ki vivechana kijiya