धर्म सुधार आंदोलन के क्या कारण थे?

धर्म सुधार आंदोलन

तात्कालीन यूरोपीय समाज में धर्म के नाम पर बुराइयाँ बढ़ती जा रही थी. पोप तथा चर्च का वर्चस्व दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था. पादरी अपनी मनमानी करने लगे थे. ऐसे में साधारण जनता उनकी मनमानी से तंग आ गए. उनमें चर्च में व्याप्त बुराईयों और उनके वर्चस्व को खत्म करने की इच्छा प्रबल होती चली गई. इसी के परिणामस्वरूप यूरोप में धर्मसुधार आंदोलन का जन्म हुआ.

इस धर्मसुधार आंदोलन के कारण

इस धर्मसुधार आंदोलन के कारण

1. चर्च की बुराईयां

धर्म सुधार आंदोलन का सबसे मुख्य कारण चर्च  में व्याप्त बुराइयां थी. वे काफी धनी होते थे और उन पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं होता था. न उन पर किसी कानून लागू नहीं होता था और न उस पर किसी प्रकार का मुकदमा चलता था, चाहे किसी प्रकार का अपराध क्यों ना किया हो. ऐसे में पादरीगण भोग और विलासिता में लिप्त होते चले गए. पादरियों को विवाह करने की अनुमति नहीं थी. लेकिन फिर भी वे विलासिता में लिप्त होते चले गए. इसके अलावा पादरी अनेक जगह पर अनेक पदों पर एक साथ कार्य करता था. इसके अलावा पोप जो ईसाई समाज का प्रतिनिधि समझा जाता वह स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि समझता था और वह खुद को संपूर्ण ईसाई राज्यों का प्रतिनिधि समझता था. उसने प्रत्येक इसाई राज्यों में अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर रखा था जो पोप के अलावा किसीकी आज्ञा स्वीकार करने को तैयार नहीं होते थे. पोप के पास असीमित अधिकार होते थे. वे जब चाहे किसी देश के समस्त गिरजाघरों को बंद कर सकता था. ऐसे में उस देश के धार्मिक क्रियाकलाप जैसे कि जन्म, विवाह, मृत्यु आदि जैसे अवसरों पर होने वाले धार्मिक क्रियाकलाप बंद हो जाते थे.  इसके अलावा वो किसी भी व्यक्ति को इसाई समाज से जब चाहे बहिष्कार कर सकता था. उसने धन अर्जित करने का भी उपाय निकाला. उसने क्षमा पत्र देना आरम्भ कर दिया. उसके अनुसार अब कोई भी व्यक्ति धन देकर क्षमा प्राप्त कर सकता था. पोप के इन अधिकारों को देखकर लोगों में भय समा गया. अतः पोप की निरंकुशता को खत्म करने के लिए धर्म सुधार आंदोलन प्रारंभ हुए.
इस धर्मसुधार आंदोलन के कारण

2. यूरोप के राजाओं की लालसा 

चर्च की धन-संपत्ति और जमीन तेजी से बढ़ती जा रही थी. उस समय राजाओं को अपने राज्य चलाने के लिए संपत्ति की काफी जरूरत होती थी. अतः यूरोप के बहुत के राजाओं की नजर पोप और चर्च की संपत्ति पर लगी हुई थी. वे उन पर किसी तरह अपना अधिकार करना चाहते थे. 

3. पोप से नफरत की भावना

1309 ई को पोप ने अपना राजधानी अपनी राजधानी को रोम से हटाकर एयुग्नेस बनाई. एयुग्नेस फ्रांस की सीमा के नजदीक होने के कारण पोप पर फ्रांस के राजा का प्रभाव काफी बढ़ गया. अतः पोप भी फ्रांस के राजा के अनुसार कार्य करने लगे. इस वजह से फ्रांस के शत्रु देश पोप से घृणा करने लगे थे. इंग्लैंड के राजा एडवर्ड तृतीय ने इंग्लैंड से पोप तथा चर्च के अधिकारों को कम करने की कोशिश करने लगा. 1378 में दो पोप हो गई. इन दोनों की लड़ाई भी इतनी बढ़ गई कि वे एक-दूसरे को नास्तिक कहने लगे. ऐसे में पोप के अधिकारों का पतन होने की लक्षण दिखाई देनी शुरू हो गई. 
इस धर्मसुधार आंदोलन के कारण

4. राष्ट्रीयता की भावना

पोप के असीमित अधिकारों के कारण लोगों को अपने देश के कानूनों के स्थान पर पोप के ही आदेशों को मानना पड़ता था. आधुनिक युग के उदय होने के कारण लोगों के अंदर राष्ट्रीयता की भावना का तेजी से विकास होने लगा था. ऐसे में लोग पोप की आदेश के स्थान पर देश की कानूनों को प्राथमिकता देने लगे थे. वे देश के प्रति वफादार रहना पसंद करने लगी. अतः लोग अब पोप के प्रभाव को कम करना चाह रहे थे.

5. पवित्र धर्म की जरूरत की महसूस

शुरूआत में इसाई धर्म का स्वरूप बहुत ही सुंदर था. लेकिन धीरे-धीरे पोप की निरंकुशता और पादरियों की भोग-विलास के कारण इसमें बुराई और अंधविश्वास तेजी से बढ़ने लगा. अब आधुनिक युग और पुनर्जागरण के आ जाने के कारण लोगों में जागरूकता तेजी से बढ़ने लगी. ऐसे में लोग इसाई धर्म में ऐसे बुराईयों को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे. अतः अब वे इनमें सुधार लाना चाहते थे. 
इस धर्मसुधार आंदोलन के कारण

6. पुनर्जागरण का प्रभाव

पुनर्जागरण के कारण अब लोग तर्क़वादी हो गए थे. अब लोग बिना किसी आधार और प्रमाण के कुछ मानने को तैयार नहीं थे. बाइबल का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया जाने लगा जिसके कारण बाइबल की पहुंच लोगों तक आसानी से हो गई  और लोग इसे अपनी भाषा में पढ़ने लगे. इस वजह से वे पोप तथा पादरियों में व्याप्त बुराईयों से अवगत होने लगे. इसके अलावा यूरोप के बहुत से समाज सुधारक इटली गए और वहां जाकर पोप की बुराईयों का पता लगाया और वापस लौटकर जनता को इस बात से अवगत कराया. यही कारण है अब जनता धर्म में सुधार चाहने लगी थी.
इस धर्मसुधार आंदोलन के कारण

7. धर्म सुधारकों द्वारा पोप का विरोध

समाज सुधारकों ने लोगों को चर्च में व्याप्त बुराईयों से के बारे में लोगों को अवगत कराने लगे. कई समाज सुधारक चर्च में व्याप्त बुराईयों के खिलाफ आवाज उठाने शुरू कर दिए. उन्होंने बाइबल को स्थानीय भाषाओं में अनुवाद करने शुरू कर दिए ताकि वे खुद बाइबल पढ़ कर उनका अर्थ जाने और पादरियों के द्वारा किए जा रहे गुमराहों से बच सके. ऐसे में लोगों में बड़े पैमाने पर जागरूकता फैलने लगे थे.
इस धर्मसुधार आंदोलन के कारण
 
उपरोक्त कारणों के कारण यूरोप वासियों में धर्म सुधार की इच्छा बहुत ही तीव्र हो गई. वे पोप तथा चर्च में व्याप्त बुराईयों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए तत्पर होने लगा. अंततः धर्म सुधार आंदोलन की शुरुआत हो गई और पोप के प्रभाव को उखाड़ फेंका गया. इस आंदोलन का यूरोपीय देशों में अनेक दूरगामी परिणाम हुए.
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इन्हें भी पढ़ें:

  1. धर्म सुधार आंदोलन के क्या परिणाम हुए?
  2. यूरोप में पुनर्जागरण के प्रभावों का वर्णन करें
  3. इंग्लैंड में हुए औद्योगिक क्रांति के क्या परिणाम हुए?

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