पुष्यमित्र शुंग की उपलब्धियों का वर्णन करें

पुष्यमित्र शुंग

पुष्यमित्र शुंग ने 184 ईसा पूर्व मौर्या वंश के आखिरी सम्राट बृहद्रत की हत्या करके साम्राज्य को अपने अधीन कर  लिया था. उसका झुकाव आरम्भ से ही सेना की ओर होने के कारण साम्राज्य का शासक बनने पर भी खुद को सेनापति कहलाया. उसने अपने शासनकाल में बहुत सी उपलब्धियां हासिल की.

पुष्यमित्र शुंग की उब्लब्धियां

पुष्यमित्र शुंग की उब्लब्धियां

1. अपने साम्राज्य की पुनर्गठन 

जिस समय पुष्यमित्र शुंग ने साम्राज्य का नियंत्रण अपने हाथ में लिया उस समय उसके साम्राज्य की सोच अत्यंत दयनीय थी. कलिंग, महाराष्ट्र, आंध्र जैसे  स्वतंत्र हो  चुके थे और मगध साम्राज्य के लिए चुनौती बन रहे थे. इसके अतिरिक्त देश की सीमा क्षेत्रों  पर पर्याप्त नियंत्रण न होने के कारण यूनानी आक्रमण का खतरा दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था. ऐसे में उसने सर्वप्रथम देश की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में कदम उठाया और साम्राज्य को दृढ़ता प्रदान की.

पुष्यमित्र शुंग की उब्लब्धियां

2. विदर्भ पर जीत

पुष्यमित्र शुंग ने साम्राज्य को मजबात करने के बाद उसने अपने साम्राज्य को विस्तार करने की दिशा में कदम उठाना शुरू कर दिया. अतः उसने विदर्भ पर हमले किए. इस अभियान में उसकी सेना का संचालन उसके पुत्र अग्निमित्र ने किया और उसने विजय प्राप्त की. इसके बाद विदर्भ को दो भागों में बांट दिया गया और एक भाग का शासक माधनवसेन तथा दूसरे भाग को शुंगों की अधीनता स्वीकार करने के कारण यज्ञसेन को सौंप दिया गया.  वर्धा नदी को दोनों भागों का सीमा रेखा मान लिया गया.

पुष्यमित्र शुंग की उब्लब्धियां

3. खारवेल के साथ युद्ध

कुछ इतिहासकारोंका मानना है कि पुष्यमित्र शुंग और कलिंग शासक खारवेल के बीच जंग हुई थी जिसमें ख़ारवेल की जीत हुई थी. लेकिन डाॅ हेमचन्द्रराय चौधरी तथा डाॅ आर. एस. त्रिपाठी इस दावे को खारिज करते हैं. उनके अनुसार पुष्यमित्र शुंग और कलिंग शासक खारवेल समकालीन शासक नहीं थे. अतः उनके बीच  जंग की प्रश्न ही नहीं उठता. इनके अनुसार खारवेल का शासनकाल प्रथम शताब्दी के तृतीय चरण था, जबकि पुष्यमित्र की मृत्यु 148 ई. पूर्व में ही हो गई थी. ऐसे में यह अनुमान लगाया जाता है कि खारवेल के द्वारा पराजित राजा कोई अन्य था.

पुष्यमित्र शुंग की उब्लब्धियां

4. अश्वमेध यज्ञ

पुष्यमित्र एक ब्राह्मण कुल के होने के कारण उनकी रुचि धार्मिक अनुष्ठान करने में था. अतः उसने अपने शासनकाल में अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान भी किया था. इस यज्ञ का जिक्र मालविकाग्निमित्र तथा पतांजलि ने अपने ग्रंथों में किया गया है. इन ग्रंथों के अनुसार इसी अश्वमेध यज्ञ के घोड़े पकड़ने के कारण उनके और यवनों के बीच युद्ध हुआ जिसमें पुष्यमित्र शुंग की जीत हुई थी.

5. यवनों के साथ संघर्ष

पुष्यमित्र शुंग के शासन काल में ही यवनों ने भारत पर आक्रमण किया. इनके साथ पुष्यमित्र शुंग की जंग हुई.  इसमें पुष्यमित्र शुंग की जीत हुई. ये जीत पुष्यमित्र शुंग के महान उपलब्धियों में से एक है क्योंकि उसने यवनों को भारत पर अधिकार करने नहीं दिया. यवनों के द्वारा भारत पर आक्रमण करने की घटना की विस्तृत जानकारी मालविकाग्निमित्र और तथा पतंजलि के महाभाष्य, गार्गीसंहिता के युगपुराण आदि में मिलती है.

पुष्यमित्र शुंग की उब्लब्धियां

दिव्यावादन और तारानाथ के अनुसार पुष्यमित्र शुंग का साम्राज्य पश्चिम में स्यालकोट, दक्षिण में विदर्भ, दक्षिण-पूर्व में कलिंग की सीमा को छूती थी. कोशल भी उसके साम्राज्य का एक अंग था.

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