पूर्व पाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए

पूर्व पाषाण कालीन संस्कृति

भारत में पाषाण कालीन सभ्यता अर्थात पूर्व पाषाण कालीन संस्कृति की खोज तथा अध्ययन का कार्य सर्वप्रथम 1863 ई. में आरंभ हुआ था. ये खोज तत्कालीन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के विद्वान रॉबर्ट ब्रूस फुट ने शुरू की थी. उन्होंने 13 मई सन 1863 ई. को तमिलनाडु के पल्लवरम नामक स्थान से लेटराइट के जमाव से एक क्लीवर खोज निकाला था. इसके बाद 1957-58 ई. के बीच उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के क्षेत्र के नर्मदा नदी की घाटी में महेश्वर तथा अन्य स्थानों पर उत्खनन कार्य किए गए. उससे पाषाण कालीन सामग्री प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुई. इसके पश्चात कई स्थानों पर सर्वेक्षण किया गया. इस सर्वेक्षण में गुफाओं में मनुष्य के द्वारा बनाए गए चित्र, मिट्टी के पात्र आदि बड़ी मात्रा में प्राप्त हुए. इन स्थानों में मानव के औजार, हथियार, दैनिक जीवन में आने वाले अनेक वस्तुएं भी प्राप्त हुई है. अध्ययन में सुविधा के दृष्टिकोण से पूर्व पाषाण काल को हम तीन भागों में बांटते हैं:- निम्न पूर्व पाषाण काल (Lower Paleolithic Age), मध्य पूर्व पाषाण  काल (Middle Paleolithic Age) तथा उच्च पूर्व पाषाण काल (Later Paleolithic Age).
पूर्व पाषाण कालीन संस्कृति

1. निम्न पूर्व पाषाण काल (250,000-1,00,000 ई.पू.)

इतिहासकारों के मुताबिक मानव जीवन की शुरुआत अफ्रीका में हुई थी. भारत में अभी तक आदिम मानव के जीवाश्म नहीं मिले हैं, परन्तु हिमवर्तन काल के प्राचीन मानव के संकेत जरूर मिले हैं. भारत में इस काल में मानवों के द्वारा इस्तेमाल किये गए पत्थरों उपकरण मिले हैं. पत्थरों के इन उपकरणों के काल 2,50,00 ई. पू. बताया जा रहा है. हाल में ही महाराष्ट्र के बोरी नामक स्थान पर खुदाई करने के बाद लगभग 14 लाख वर्ष पहले के अवशेष प्राप्त हुए हैं. वर्त्तमान पाकिस्तान में स्थित सोहन नदी के किनारे गोल पत्थरों से निर्मित उपकरण मिले हैं. सम्भवत: वे इन उपकरणों का इस्तेमाल शिकार करने के लिए करते थे. यही प्रचीन भारतीय मानव के द्वारा छोड़े गए एकमात्र प्रमाण हैं. इन उपकरणों के अध्ययन करने पर हम बहुत हद तक प्राचीन भारतीय आदिमानव के जीवन और रहन-सहन की कल्पना कर सकते हैं. सोहन नदी, सिंधु नदी की सहायक नदी थी. इस स्थान के उत्खन्न से हमें लम्बे कालक्रम के पत्थर से बने उपकरण मिले हैं. इस लम्बे कालक्रम में निर्मित उपकरणों के अध्ययन करने पर समय के साथ-साथ उपकरणों में होती बदलाव को हम स्पष्ट  देख सकते है. इस स्थान पर मांस काटने वाले औजार और हस्त कुल्हाड़े भी प्राप्त हुए हैं. 
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सोहन नदी घाटी के बाद निम्न पूरा पाषाण काल के सबसे उन्नत उपकरण मद्रास इण्डस्ट्री से प्राप्त हुए हैं. 1938 ई. में मद्रास के चिंगलपेट नामक स्थान में उत्खनन हुआ, जिसमें यहाँ के कोटिलियर घाटी में हस्त कुल्हाड़ी तथा क्लीवर मिले हैं. मद्रास उद्योग को हम द्वितीय हिमवर्तन काल में रखते हैं. इस उद्योग के अंतर्गत हुए बहुत से उत्खनन के परिणामस्वरूप विभिन्न इलाकों में बहुत से हस्त कुल्हाड़े प्राप्त हुए हैं. इसके अलावा मध्य भारत के नर्मदा घाटी के नरसिंहपुर और होशंगाबाद में हुए उत्खनन के परिणामस्वरूप पुरापाषाण कालीन औजारों के साथ-साथ मध्य नूतन युगीन जीवाश्म प्राप्त हुए हैं. यहां से सोहन संस्कृत से मिलती-जुलती चपर-चॉपिंग, हस्त-कुल्हाड़ी, क्लीवर, हस्तकुठार जैसे अनेक उपकरण मिले हैं. इसके अलावा नर्मदा घाटी के हथनोरा से एक होमो इरेक्टस का कंकाल प्राप्त हुआ है. यह निम्न पुरापाषाण काल का अकेला प्राप्त मानव कंकाल है.

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2. मध्य पूर्व पाषाण  काल (1,00,000-40,000 ई.पू.)

इस काल को हम निएंडरथल मानव के विकास का काल भी कहते हैं. इस काल की समय अवधि 1 लाख से 40 हजार ई. पू. मानी जाती है. इस काल में मानव के तकनीकी ज्ञान में सुधार हुआ. मध्य पुरापाषाण काल में सबसे प्रमुख अंतर उपकरण के कच्चे माल में आया है. पुरापाषाण  में क्वार्ट्ज जो मुख्य कच्चा माल था, उसका स्थान जैस्पर, चर्ट, फ्लिंट आदि चमकदार पत्थरों ने ले लिया. इस काल का सबसे प्रमुख स्थल महाराष्ट्र है. इनमें अधिकांश स्थल गोदावरी घाटी में स्थित है. गोदावरी घाटी के अन्य स्थलों में बेल पढारी, सुरेगांव और नंदूर प्रमुख हैं. मध्य प्रदेश व बुंदेलखंड क्षेत्र में भी उन्नत दशा में इस काल के स्थल मिलते हैं. इस क्षेत्र के मुख्य नदी-घाटियों में इस काल के प्रमाण साफ देखे जा सकते हैं. मध्य प्रदेश के भीमबेटका की गुफाओं में हुए उत्खनन से 200 से अधिक शैलकृत गुफाएं पाई गई है. यहां विभिन्न कालक्रम का प्रतिनिधित्व करती अनेक परत भीपाई गई है. यहां के मलबे में 5000 से अधिक अलग-अलग उपकरण प्राप्त हुए हैं. कुछ समय पहले राजस्थान और सिंध के मरुस्थल में भी इस काल के स्थल मिले हैं. इस काल के प्रमुख उपकरण चापर -चॉपिंग, हस्त-कुठार, बेधक, खुरचानियाँ आदि हैं. ये उपकरण निम्न पूरा पाषाण काल के औजारों के तुलना में काफी तेज, नुकीले तथा उन्नत किस्म के हैं. 
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3. उच्च पूर्व पाषाण काल (40,000-10,000 ई.पू.)

यह काल हिम युग के अंतिम अवस्था का काल था. इसके बाद जलवायु धीरे-धीरे गर्म होती जा रही थी. इससे मनुष्य के रहन-सहन बदलाव आने लगा था. मानव, आधुनिक मानव के रूप में विकसित होने लगा. इस काल में मानव दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में फैलने लगे थे. इसके साथ-साथ अन्य क्षेत्रों के लोगों के साथ परस्पर मेल मिलाप बढ़ने लगा था. नए-नए हथियारों का सृजन होने लगा. इन हथियारों में सुईयाँ, अस्थि-औजार, हार्पून आदि शामिल थे. इलाहाबाद के पास स्थिति बेलन घाटी से इस युग के अनेक अवशेष प्राप्त हुए हैं. इसके अलावा भारत के अन्य स्थानों, जैसे कि कर्नाटक के शोलापुर, बीजापुर, मध्यप्रदेश के बागौर द्वितीय, भीम बेटिका, रेणिगुंटा आदि स्थानों में भी इस काल से संबंधित अवशेष प्राप्त हुए. इस काल के हथियार हल्के और परिष्कृत थे. इसके किनारे काफी तेज थे. ऐसे कुछ हथियार रेणुगुंटा से प्राप्त किए गए हैं. इस काल के प्रमुख औजार तक्षिणी, छिद्रक, खुचीनी, और हड्डियों के बने औजार होते थे. इस काल की समाप्ति काल 10,000 ई. पू. को माना जाता है. 
पूर्व पाषाण कालीन संस्कृति
इस प्रकार हम जब भारत के पूर्व पाषाण कालीन संस्कृति के बारे में अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि इस काल की संस्कृतयां विभिन्न काल क्रम में बंटी हुई है. प्रत्येक कालक्रम की अपनी खास पहचान है. प्रत्येक कार्यक्रम में मनुष्य ने अपनी रहन-सहन में काफी बदलाव लाया. इसके अलावा कालक्रम के बदलाव के क्रम में इनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण में भी काफी बदलाव आया. इस काल के अंत में मनुष्य आधुनिक रहन-सहन की ओर अग्रसर होते गए.

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