प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत
धार्मिक ग्रंथ
धार्मिक महत्व रखने वाले साहित्यों को धार्मिक ग्रंथ कहते हैं. इन ग्रंथों में धार्मिक विश्वास के साथ तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, स्थिति का जिक्र मिलता है. धार्मिक ग्रंथ भी धार्मिक विश्वास के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है – ब्राह्मण ग्रंथ, बौद्ध ग्रंथ तथा जैन ग्रंथ.
1. ब्राह्मण ग्रंथ
भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालने के लिए बहुत से ब्राह्मण ग्रंथ उपलब्ध हैं. इनमें से प्रमुख वेद, उपनिषद, वेदांग, महाकाव्य, स्मृति, पुराण आदि है. वेद आर्यों का प्राचीनतम ग्रंथ है. इनकी संख्या चार है- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद. इनमें से ऋग्वेद सबसे प्राचीन है. आर्यों के बारे में सर्वाधिक जानकारी इसी से मिलता है. वेदों का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है. ऐतिहासिक रूप से भी इसका बहुत ही महत्व है. वेदों के बाद महाकाव्य का स्थान है. महाकाव्य दो हैं- रामायण और महाभारत. तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक दृष्टिकोण से इनका बहुत बड़ा महत्व है. राजनीतिक दृष्टिकोण से महाभारत, रामायण की अपेक्षा अधिक महत्व रखता है. वेदांगों की संख्या छह है- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद एवं ज्योतिष. वेदांग से तत्कालीन समाज एवं धर्म पर विस्तृत प्रकाश पड़ता है. पुराणों की संख्या 18 है, परंतु इनमें से पांच का ही ऐतिहासिक महत्व है. ये पांच हैं- मत्स्य, भगवत पुराण, विष्णु, वायु और ब्राह्मण पुराण. इन सबके अलावा बहुत से ब्राह्मण ग्रंथ है.
2. बौद्ध धर्म ग्रंथ
ब्राह्मण ग्रंथ के समान बौद्ध ग्रंथ भी प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान रखता है. बौद्ध ग्रंथों में मुख्य रूप से पिटक और जातक हैं. बौद्ध ग्रंथ पिटक के तीन खंड है- विनय पिटक, सूत्र पिटक और अभिधम्म पिटक. विनय पिटक में मठ में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं के लिए आवश्यक निर्देश हैं. सूत्र पिटक में महात्मा बुद्ध के उपदेशों का सार है तथा अभिधम्म पिटक में बुद्ध के महत्वपूर्ण के उपदेशों को दार्शनिक रूप में व्याख्या की गई है. यह तीनों पिटक पाली भाषा में है. जातक, बौद्ध ग्रंथों में दूसरा स्थान है. जातक में महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाओं का विवरण है. इन कथाओं से तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है. जातक के अलावा और भी कई बौद्ध साहित्य उपलब्ध हैं.
3. जैन ग्रंथ
भारतीय इतिहास के अध्ययन के लिए जैन ग्रंथ भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जैन ग्रंथों में मुख्य रूप से भद्रबाहुरचित, परिशिष्टपर्व, पुण्यश्रव्य, कथाकोष, लोक विभाग आदि प्रमुख हैं.
धर्मनिरपेक्ष ग्रंथ
धर्म ग्रंथ के अलावा कुछ ऐसे साहित्य हैं जिनका धर्म से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होता है. इन्हें धर्मनिरपेक्ष साहित्य कहा जाता है. धर्मनिरपेक्ष साहित्यों को भी दो भागों में बांटा जाता है- कल्पना प्रधान, लोक साहित्य, जीवन चरित्र एवं अन्य ग्रंथ तथा विदेशी यात्रियों का वृत्तांत.
1. कल्पना प्रधान, लोक साहित्य, जीवन चरित्र एवं अन्य ग्रंथ
इस प्रकार के पुस्तकों में अर्थशास्त्र, मुद्राराक्षस, कालिदास की रचनाएं, हर्षचरित महाभाष्य, गार्गी संहिता, राजतरंगिणी, पृथ्वीराज रासो जैसे ग्रंथ आते हैं. अर्थशास्त्र की रचना चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री चाणक्य ने ई. पू. चौथी शताब्दी में की थी. इस ग्रंथ से तत्कालीन शासन व्यवस्था पर व्यापक पर प्रकाश पड़ता है. राजनीति, कूटनीति और शासन प्रबंध पर ये एक उत्कृष्ट कृति मानी जाती है. अर्थशास्त्र मौर्य काल के विषय में जानकारी देने वाली सबसे प्रमाणिक पुस्तक है. मुद्राराक्षस की रचना विशाखदत्त ने की थी. यह एक नाटक है. इसमें नंद राजा के पतन तथा चाणक्य द्वारा चंद्रगुप्त को राजा बनाए जाने का उल्लेख है. इस नाटक की रचना सातवीं शताब्दी में हुई थी. इसके अलावा कालिदास के अनेक रचनाओं के द्वारा भारत के तत्कालीन संस्कृति पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. मालविकाग्निमित्र में पुष्यमित्र व यवनों के मध्य हुए युद्ध का उल्लेख भी है. गार्गी संहिता में भारत पर यवनों के द्वारा हुए आक्रमणों का उल्लेख है. कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी नामक ग्रंथ में कश्मीर के इतिहास के बारे में मुख्य रूप से उल्लेख है. इस ग्रंथ की रचना 12 वीं शताब्दी में हुई थी. इस ग्रंथ का भारतीय इतिहास के दृष्टिकोण से अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व है. चंदबरदाई के द्वारा लिखे गए पृथ्वीराज रासो नामक ग्रंथ में चौहान शासक पृथ्वीराज चौहान के विषय में बहुत से महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती है. इसके अलावा नवसासांक चरित्र, गौडवाहो, विक्रमांकदेवचरित जैसे कई अनेक ग्रंथ है जो प्राचीन भारत के इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं.
2. विदेशी यात्रियों का वृत्तांत
प्राचीन काल में बहुत से विदेशी विद्वानों ने भारत की यात्रा की और इन यात्राओं के दौरान उन्होंने अपने अनुभवों को लिखा. इन विदेशी यात्रियों के अनुभव तथा स्मरण के आधार पर लिखे गए वृतांत के द्वारा प्राचीन भारतीय इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती है. इन विदेशी यात्रियों में मुख्य रूप से यूनानी यात्री हेरोडोटस, टेसियस, मेगस्थनीज चीनी यात्री सुमाचीन, फाह्यान, इत्सिंग, तिब्बत्ती यात्री तारानाथ तथा इसके अतिरिक्त मुसलमान यात्री अलबरूनी ,अलविलादूरी, सुलेमान अलमसूदी जैसे प्रमुख यात्री थे.
यूनानी लेखक हेरोडोटस सबसे प्राचीनतम लेखक है. इन्होंने पांचवी शताब्दी ई. पू. में भारतीय सीमाप्रांत व हखमी साम्राज्य के मध्य राजनीति संपर्क पर प्रकाश डाला है. मेगास्थनीज ने भारतीय घटनाओं का बारीकी से अवलोकन किया. उसने अपनी पुस्तक इंडिका में भारतीय संस्थानों, भूगोल, कृषि, आदि के विषय में उल्लेख किया. तिब्बती यात्री तारानाथ के द्वारा रचित कंग्युर व तंग्युर का भी भारतीय ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण है. इसके अतिरिक्त मुसलमान लेखक अलबरूनी की रचना तहरीक-ए-हिंद के द्वारा तत्कालीन भारतीय इतिहास के विषय में बहुत से महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती है.
इन सबके अलावा और भी अन्य प्राचीन भारतीय ग्रंथ है जिसके द्वारा हम प्राचीन भारत के इतिहास को अच्छी तरह जान सकते हैं. भारतीय इतिहास के अध्ययन के लिए साहित्य स्रोतों का बहुत बड़ा योगदान है.
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प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत के रूप में वेदों की भूमि
का
साहित्यिक स्रोत के बारे में वर्णन दीजिए
Dwitiya nagarikaran per tippani long answer 20 marks ke liye
भारतीय साहित्य के गौरव की रूप में वेद, पुराण एवं महाकाव्य का वर्णन कीजिए।
Sir please give my answer (brahaman sahitaya par prakash daliye) question hai
Parachin bhartiya ithihas ke punarnirman mein sahityik shroto ka mulyankan kaise kre