भारत में लौह युगीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए

भारत में लौह युगीन संस्कृति

मानव सभ्यता के विकास के क्रम में भारत में लौह युगीन संस्कृति का बहुत बड़ा महत्व है. इस युग में मानव को लोहे का ज्ञान हुआ. लोहे का ज्ञान होने के साथ ही लोहे के उपकरणों का निर्माण होने लगा. लोहे का ज्ञान होने के बाद लोगों का पत्थर, ताम्बे तथा काँसे से बने उपकरण पर निर्भरता काम होती चली गई. लोहे की खोज आदिमानव के विकास के रास्ते का एक बहुत बड़े मील का पत्थर साबित हुआ. इसके खोज होने के बाद मानव इतिहास में बहुत से क्रांतिकारी बदलाव होने शुरू हो गए.

मानव इतिहास में लोहे का प्रचलन सर्वप्रथम कब और कहां हुआ था, यह अभी तक विवादास्पद है. ज्यादातर इतिहासकारों का मानना है कि लोहे को खानों से निकालने तथा धातु शोधन प्रक्रिया सबसे पहले टर्की के क्षेत्र में हुआ. इसके पश्चात हित्ती साम्राज्य में इसका प्रचलन शुरू हुआ. हित्ती साम्राज्य के विघटन के बाद इसका प्रसार पश्चिमी एशिया में हुआ. इसके पश्चात ईरान तथा पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में लोहे की खोज हुई.

भारत में लौह युगीन संस्कृति

भारत में लौह युगीन संस्कृति के विषय में विभिन्न शोध का उत्खनन के परिणाम स्वरुप बहुत सी जानकारियां मिलती है. हालांकि पहले ऐसा समझा जाता था कि आर्य आक्रमणकारी अपने साथ लोहा लेकर भारत आए थे, लेकिन भारत के प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथ तथा अन्य पुरातात्विक स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर इन बातों का खंडन किया गया. ऋग्वेद में उल्लेख अयस शब्द का प्रयोग सिर्फ लोहे के लिए नहीं वरन अन्य धातुओं के लिए भी किया गया. इसके अलावा अन्य प्राचीन ग्रंथों में लोहे के लिए लोहित अयस तथा कृष्ण अयस जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया. अथर्ववेद में कृषि के कार्य में प्रयुक्त होने वाले लोहे के फाल का जिक्र मिलता है.

भारत लौह युगीन संस्कृति से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए खोज तथा शोध कार्य निरंतर चलता रहा. इसके परिणामस्वरूप भारत के विभिन्न हिस्सों में लोहे से संबंधित बहुत से साक्ष्य प्राप्त हुए. इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से ऊपरी गंगा घाटी, दोआब, पूर्वी भारत, मध्य भारत, दक्कन तथा दक्षिणी भारत के कई हिस्से शामिल हैं. शोधकर्ताओं के मुताबिक उत्तर भारत और दक्षिण भारत में लौह युगीन संस्कृति का आरम्भ अलग अलग समय में हुआ. उनके अनुसार भारत में सबसे पहले लौह युगीन संस्कृति उत्तर भारत में आई. इसके काफी बार दक्षिण भारत में शुरू हुई.

भारत में लौह युगीन संस्कृति

उत्तरी भारत

उत्खनन के परिणाम स्वरूप इन बाद इस बात की पुख्ता जानकारी मिलती है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी में उत्तर भारत के लोग लोहे के उपकरण का प्रयोग करते थे. राजस्थान के नोह तथा जोधपुर नामक स्थानों की खुदाई के बाद मिली साक्ष्य से इन बातों की पुष्टि होती है.

पूर्वी भारत

पूर्वी भारत के चिरांड, सोनपुर, महिषादल आदि स्थानों में लोहे के अवशेष प्राप्त हुए हैं. इन स्थानों से लोहे की बनी वस्तुएं जैसे कि फलक, मिला, छेनी तथा कीलें प्राप्त हुई.

मध्य भारत तथा दक्कन

मध्य भारत तथा दक्कन के प्राचीन क्षेत्र जैसे कि नागदा, एरण, उज्जैन, कायथा, प्रकाश तथा बहाल आदि क्षेत्रों में लौह यगीन संस्कृति देखने को मिलती है. एरण तथा नागदा में लोहे से निर्मित दोधारी कटार, चम्मच, छल्ला, चाकू, हंसिया  आदि प्राप्त हुए हैं. 

भारत में लौह युगीन संस्कृति

दक्षिणी भारत

दक्षिण भारत के विभिन्न राज्य में जैसे कि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल के कई भागों से उत्खनन के परिणाम स्वरूप लोहे से निर्मित विभिन्न प्रकार के उपकरण मिले हैं. इन उपकरणों में मुख्य रूप से गैंती, हंसिया, वसूली, छैनी, फावड़ा, कुल्हाड़ी, चाकू, त्रिशूल, कटार, बाण फलक, तलवार आदि शामिल है. इन से यह बात स्पष्ट है कि प्राचीन काल में भारत में लौह युगीन संस्कृति काफी विकसित थी.

उत्तरी भारत और दक्षिण भारत से प्राप्त लौह युगीन उपकरणों के अध्ययन के बाद विशेषज्ञों ने पाया कि दोनों के प्रेरणा स्रोत भिन्न थे. लेकिन प्रेरणा स्रोत क्या थे, इस बात की कोई सटीक जानकारी नहीं मिल पाई. इससे यह भी संदेह व्यक्त किया जाता है कि संभवत दक्षिण भारत के लोग बाहरी लोगों के संपर्क में आकर यह संस्कृति सीखी होगी.

भारत में लौह युगीन संस्कृति

भारत में लौह युगीन संस्कृति के प्रेरणा स्रोत चाहे कुछ भी हो, लेकिन शोध तथा खोजों के परिणाम स्वरुप यह स्पष्ट है कि भारत में लोहे का प्रयोग ई.पू. छठी शताब्दी से पहले ही किया जाने लगा था. भारत में लोहे की तकनीकी विकसित होने के बाद कृषि कार्य, घरेलू कार्य, उद्योग-धंधों आदि में तेजी से बदलाव आने लगा. इस प्रकार भारत में लौह युगीन संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा.

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1 thought on “भारत में लौह युगीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए”

  1. लौह अयस्क सर्व प्रथम किस स्थल से प्राप्त हुआ

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