महायान का उदय
महायान, बौद्ध धर्म की ही एक शाखा है. प्रारंभ में महात्मा बुद्ध द्वारा स्थापित बौद्ध धर्म की कोई शाखा नहीं थी, लेकिन कालांतर में बौद्ध धर्म टूट कर दो भागों में बांट गया. इन भागों को महायान और हीनयान के नाम से जाना जाता है. महायान का उदय होने की तिथि के विषय में विद्वानों के बीच मतभेद है. डॉक्टर आर एस त्रिपाठी के अनुसार महायान का उदय कनिष्क के शासन काल से पहले ही हो गया था. इस विषय पर बहुत से स्रोतों का अध्ययन करने पर इतिहासकार इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि महायान का उदय ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी में हुआ था. कनिष्क के शासन काल में यह संपूर्ण उत्तर भारत में फैल गया.
बौद्ध धर्म से निकली महायान के उदय के निम्नलिखित कारण थे:-
1. विदेशी धर्मों का प्रभाव
डॉ सुमित के अनुसार जब बौद्ध धर्म का प्रचार विदेशों में भी होने लगा तो वहां के धर्म का प्रभाव बौद्ध धर्म पर भी पड़ने लगा. इस प्रभाव के परिणाम स्वरूप बौद्ध धर्म के प्राचीन एवं मूल स्वरूप भाई परिवर्तन होगा. इसी परिवर्तन के परिणाम स्वरुप महायान संप्रदाय का जन्म हुआ.
2. अन्य धर्मों में प्रचलित मूर्ति पूजा का प्रभाव
भारत के लगभग सभी प्राचीन धर्म में मूर्ति पूजा की जाती थी. लेकिन बौद्ध धर्म में प्रारंभ से ही मूर्ति पूजा निषेध था. कालांतर में बौद्ध धर्म के लोगों ने दूसरे धर्म के लोगों को मूर्ति पूजा करते देखकर वे भी महात्मा बुद्ध की मूर्ति बना कर उस की पूजा करनी शुरू कर दी. कुछ इतिहासकार मानते हैं कि भगवत गीता के भक्ति मार्ग के प्रभाव के कारण बौद्ध धर्म की महायान शाखा का उदय हुआ.
3. महात्मा बुद्ध के प्रति श्रद्धा
बौद्ध धर्मावलंबी महात्मा बुद्ध में असीम श्रद्धा रखते थे. इस कारण उसकी मृत्यु के पश्चात उनकी यह श्रद्धा भक्ति में बदल गई तथा उन्होंने महात्मा बुद्ध की मूर्ति की पूजा करना शुरू कर दिए. डॉ बाशम का कहना है कि बौद्धों में यह भावना जागृत हो गई थी कि महात्मा बुद्ध कोई साधारण मनुष्य नहीं बल्कि भगवान के अवतार थे. अतः वे उसकी पूजा करनी शुरू कर दी. इस प्रकार महायान संप्रदाय का जन्म हुआ.
4. जैन धर्मावलंबियों के द्वारा मूर्ति पूजा
जैन धर्मावलंबियों ने अपने तीर्थकरों की मूर्तियों की पूजा पहले से ही शुरू कर दी थी. अतः इनका देखा-देखी बौद्धों को भी मूर्ति पूजा करने की प्रेरणा मिली और वे भी महात्मा बुद्ध की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करने लगे.
5. विदेशी आक्रमण का प्रभाव
भारत पर लंबे समय से विदेशी आक्रमणकारी आक्रमण करते रहे. इन विदेशी आक्रमणकारियों में विभिन्न जातियां शामिल होती थी. इनमें से कुछ भारत में ही बस गए. इन जातियों ने बौद्ध धर्म को अपनाया तथा धीरे-धीरे उसमें भी अपने अनेक धार्मिक क्रियाओं को मिला दिया. इस कारण धीरे-धीरे बौद्ध धर्म के प्राचीन स्वरूप में धीरे-धीरे बदलाव आने लगा और अंततः महायान शाखा का उदय हुआ.
महायान संप्रदाय के सिद्धांत अत्यंत सरल था. इस कारण से बौद्ध धर्म की इस शाखा का विकास अत्यंत तीव्र गति से हुआ. हीनयान के अनुयाई महायान को विधर्मी समझने लगे तथा उसे बौद्ध धर्म का विकृत स्वरूप कहने लगे. परंतु ऐसा सोचना तर्कसंगत नहीं है. दोनों शाखाओं में सैद्धांतिक मतभेद नहीं है. अंतर केवल व्यवहार एवं दृष्टिकोण में है.
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