मौर्यकालीन व्यापार पर प्रकाश डालिए

मौर्यकालीन व्यापार

मौर्य काल में वाणिज्य और व्यापार की काफी अवस्था में थी. इसके मुख्य कारण मौर्य शासकों के द्वारा व्यापार को काफी प्रोत्साहन दिया गया. इस कारण व्यापार के क्षेत्र में काफी उन्नति हुई. मौर्य काल में सूट कातने और बुनने का काम प्रमुख उद्योगों में से एक था. उस समय ऊन, रेशे, कपास और रेशम के द्वारा सूत काता जाता था. मेगस्थनीज ने इन से निर्मित वस्तुओं की काफी प्रशंसा की. उस समय काशी, पुण्ड्र, कलिंग और मालवा आदि सूती वस्त्रों के प्रमुख केंद्र थे. मैगस्थनीज ने भारत में विभिन्न धातुओं की खानों और खनिज व्यापार का भी उल्लेख किया है. इन खनिजों का उपयोग आभूषण बनाने, बर्तन बनाने, युद्ध के लिए अस्त्र-शस्त्र तथा मुद्राएं बनाने आदि के लिए किया जाता था. इसके अतिरिक्त मैगस्थनीज ने जहाज बनाने वालों, कवच व आयुध का निर्माण करने वालों तथा कृषि उपकरण का निर्माण करने वालों का भी उल्लेख किया है. इन उद्योगों में विभिन्न अधिकारियों के द्वारा समय-समय पर निरीक्षण कार्य भी किया जाता था. इसके अलावा लोगों ने स्वतंत्र रूप से बहुत से छोटे-छोटे लघु उद्योग स्थापित कर रखे थे. उद्योगों को सरकार के द्वारा पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाती थी. अर्थशास्त्र में भी बहुत से उद्योगों के विषय में जानकारी प्राप्त होती जो की उन्नत अवस्था में थे. इन उद्योगों में हाथी दांत का कार्य, मिट्टी के बर्तन, जूते व ढाल बनाने के बारे में उल्लेख किया गया. नियार्कस ने लिखा है कि भारतीय सफेद रंग के जूते पहनते थे जो कि देखने में बहुत सुंदर होते थे. 

मौर्यकालीन व्यापार

मौर्य काल में राज्य की ओर से व्यापार को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से प्रमुख व्यापारिक मार्गों पर सड़कें तथा अन्य सुविधाएं  जलीय व्यापार के लिए बंदरगाह भी बनवाए गए थे. इन मार्गों में व्यापारियों की सुरक्षा का भी उचित प्रबंध किया जाता था. मौर्यों की सुव्यवस्थित शासन प्रणाली एवं प्रोत्साहन नीति से विदेशी व्यापार में भी काफी वृद्धि हुई. मौर्य शासकों और यूनानी राज्यों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध हुआ करता था. इस कारण यूनानी राज्यों से व्यापार जल व थल दोनों मार्गों से होने लगा. 

मौर्यकालीन व्यापार

भारत से मुख्य रूप से हाथी दांत, कछुए की पीठ, सीपियां, मोती, रंग, नील तथा बहुमूल्य लकड़ियों का निर्यात किया जाता था. वस्तुओं का आयात-निर्यात कर भी राज्य के द्वारा लिया जाता था जिसकी वजह से राज्य की काफी आर्थिक उन्नति होती गई. प्रजा के हित के लिए व्यापारियों पर राज्य का कठोर नियंत्रण रहता था. समय-समय पर लाभ की निश्चित दरों, पाप-तौल आदि के बारे में राज्य के अधिकारियों के द्वारा जांच की जाती थी. इनमें किसी प्रकार की गड़बड़ होने पर व्यापारियों को कठोर दंड दिया जाता था. वस्तुओं का क्रय-विक्रय मुद्राओं के द्वारा होती थी. अर्थशास्त्र में स्वर्ण, चांदी तथा तांबे की मुद्राओं का जिक्र मिलता है. मौर्य काल में मुख्य रूप से चांदी के मुद्राओं का ही प्रयोग किया जाता था.

मौर्यकालीन व्यापार

इन बातों से स्पष्ट है कि मौर्यकाल आर्थिक रूप से बहुत ही सुदृढ़ थी. मौर्य शासकों ने अपने कुशल शासन प्रबंध के द्वारा व्यापार तथा उद्योगों को काफी प्रोत्साहन दिया. व्यापार पर साम्राज्य का पूरा नियंत्रण रहता था तथा. व्यापारियों को सुरक्षा भी दी जाती थी. इस कारण मौर्य काल आर्थिक रूप से काफी उन्नत अवस्था में था.

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