राजपूत कालीन सामाजिक स्थिति (Social situation during Rajput period)
तत्कालीन समाज के लोग विभिन्न वर्गों में बंटे हुए थे.इस समय समाज में एक ओर विशिष्ट वर्ग, राजपूत वर्ग की प्रधानता थी तो दूसरी ओर साधारण वर्ग थी. वर्ण प्रथा, जाति प्रथा और दास प्रथा जोरों पर थी. इस काल में अनेक वर्गों की उत्पत्ति हुई. विशिष्ट वर्गों की शक्ति काफी बढ़ गई थी.
तत्कालीन राजपूत कालीन समाज की स्थिति
1. वर्ण व्यवस्था
इस समय भारत में वर्ण व्यवस्था चली आ रही थी. तत्कालीन वर्ण व्यवस्था, आधुनिक वर्ण व्यवस्था से काफी समानता थी. इस समय ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र के अलावा अन्य छोटी-छोटी जातियों का भी जन्म हुआ. ये जातियां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र के बीच अनुलोम और प्रतिलोम विवाह के कारण हुआ था. इनकी जाति का नाम इनके व्यवसाय के आधार पर ही हुआ. जैसे कि स्वर्णकार, लोहार, जाट, खस, आमीर आदि.
तत्कालीन समाज में ब्राह्मणों का स्थान सबसे ऊंचा था. चीनी यात्री इत्सिंग के अनुसार भारत में ब्राह्मणों को देवता की तरह पूजा जाता था. ब्राह्मण धार्मिक व अध्यात्मिक ज्ञान के विद्वान माने जाते थे. इनका काम यज्ञ अनुष्ठान करना, अध्यापन, धार्मिक संस्कार आदि करना था. परंतु राजपूत युग तक आते-आते ये सैनिक कार्य भी करने लगे थे. क्षत्रियों का भी समाज में उच्च स्थान था. इनका मुख्य कार्य लोगों की रक्षा करना, शस्त्र द्वारा जीविकोपार्जन, सत्पुरुषों का आदर, दीन दुखियों का उद्धार करना था. क्षत्रिय युद्ध भूमि में पीठ दिखाना कायर समझते थे. वैश्यों का मुख्य काम कृषि, पशुपालन, व्यापार आदि होते थे. वक्त के साथ इनकी भी अनेक जनजातियां बन गई जैसे कि श्रीमाल, प्रागवाट आदि. तत्कालीन समाज में शूद्रों की स्थिति अच्छी नहीं थी. उनको न वेद पढ़ने का अधिकार था और न जप करने का. इस वर्ग में मुख्य रूप से चमारों, धोबियों, मल्लाहों, मछुआरों को रखा जाता था. ये लोग गांवों अथवा शहर के बाहर रहते थे. इस काल में कायस्थ नामक नवीन वर्ग का भी जन्म हुआ. शुरूआत में लेखकों को कायस्थ कहा जाता था, लेकिन 12वीं शताब्दी तक ये जाति बन गई. समय के साथ इनसे सक्सेना, माथुर, श्रीवास्तव और गौड़ जैसी उपजातियां बन गई.
2. खान-पान
इस काल के लोगों का मुख्य भोजन गेहूं, धान, ज्वार, मक्का, बाजरा, जौ, चावल व विभिन्न प्रकार के साग-सब्जियां हुआ करते था. ये लोग मांस मछली का सेवन करते थे. ये मदिरा का सेवन भी करते थे. ब्राह्मण मांस-मछली का सेवन नहीं करते थे.
3. मनोरंजन के साधन
इस काल के लोगों के पास विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधन हुआ करते थे. वे अपने मनोरंजन के लिए जुआ, शिकार खेलना, संगीत, नृत्य आदि करते थे.
4. वस्त्र एवं आभूषण
इस समय के लोगों का पोशाक बहुत ही साधारण हुआ करता था. लोग धोती तथा सिले हुए कपड़े पहनते थे. इनके वस्त्र मुख्य रूप से रेशमी और सूती होते थे जो कि विभिन्न रंगों के होते थे. पगड़ी का भी प्रयोग होता था. स्त्रियां विभिन्न प्रकार की आभूषण पहनती थी. आभूषणों में मुख्य रूप से हार, कुंडल, अंगूठी वलय व कड़े होते थे. स्त्रियां चोली और लहंगा पहनती थी.
5. विवाह
इस काल में विवाह अनेक प्रकार के होते थे. अंतरजातीय विवाह का प्रचलन था लेकिन सजातीय विवाह को ही श्रेष्ठ माना जाता था. बाल विवाह निषेध था. स्त्रियों का विवाह कम उम्र में ही कर दी जाती थी. विवाह धार्मिक तथा सामाजिक रीति-रिवाजों से होते थे. क्षत्रियों में राक्षस विवाह प्रचलन था. राजकीय परिवारों में विवाह स्वयंवर के द्वारा होते थे. बहु विवाह की भी प्रथा थी.
6. स्त्रियों की दशा
इस समय स्त्रियों की दशा बहुत ही खराब थी. लड़कियों की शिक्षा केवल राजकीय परिवार तथा धनी परिवार तक ही सीमित थी. लड़कियों को संगीत, नृत्य, चित्र कला और साहित्य की शिक्षा दी जाती थी. राजपरिवार की कन्याओं को अस्त्र-शस्त्र और घुड़सवारी की भी शिक्षा दी जाती थी. इस समय पर्दा प्रथा बहुत ही सीमित था.
7. दास प्रथा
इस काल में दास-प्रथा प्रचलन थी. इस काल में कृषि दासों की उल्लेखनीय वृद्धि हुई. इसका मुख्य कारण है बौद्ध धर्म के अनेक संरक्षण राजाओं ने बौद्ध विहारों को दानस्वरूप बहुत सी भूमि दी थी. बौद्ध भिक्षु उस भूमि पर कार्य करने में असमर्थ थे. अतः वह दासों से खेती करवाते थे. इसके अलावा जब भूमि बेची जाती थी तो उसके साथ दास भी बेच दिए जाते थे.
इन बातों से यह स्पष्ट है कि तत्कालीन भारतीय समाज विभिन्न वर्गों में बंटे हुई थी. इसी काल में अनेक छोटी-छोटी जाति तथा उपजातियों का जन्म हुआ.
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