रूस की क्रांति 1905 ई. के कारण और परिणाम
1905 ई. में रूस के इतिहास में जारशाही की निरंकुशतावादी शासन के खिलाफ एक ऐतिहासिक क्रांति हुई.रूस की क्रांति 1905 ई. के कारणों और परिणामों ने रूस के भविष्य में होनेवाली क्रांतियों की नीव तैयार कर दी। भले ही ये क्रांति असफल हो गई पर इस क्रांति ने न केवल रूस के बल्कि पूरे विश्व में इसके दूरगामी परिणाम लाये.
1905 ई. में रूस में हुए क्रांति के कारण
1. रूस की समाजिक स्थिति
इस समय रूस में विभिन्न जातियां निवास करती थी. इन जातियों में मुख्य रूप से रूसी, पोल, फिन, अर्मिनियां आदि थे. ये जातियां कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और यहूदी धर्म के अनुयायी थे. इस समय रूस का राजधर्म यूनानी ऑर्थोडोक्स था तथा बहुसंख्यक रूसी नागरिक इसी धर्म के अनुयायी थे. यूनानी ऑर्थोडोक्स धर्म के अनुयायियों को बहुत सी सुविधाएँ और अधिकार प्राप्त थे. इसके विपरीत अन्य अल्पसंख्यक समुदाय को इस प्रकार की कोई सुविधाएं प्राप्त नहीं थी तथा उन पर अनेक प्रतिबंध लगे हुए थे. इन अल्पसंख्यक समुदायों में यहूदी सबसे अधिक पीड़ित थे. इन पर अन्य अल्पसंख्यक समुदाय की तुलना में अधिक प्रतिबंध लगे हुए थे. तत्कालीन रूसी शासक यहूदी जातियों का नाश कर देना चाहती थी. इन सब कारणों से अल्पसंख्यक समुदायों में असंतोष की भावना बढ़ती जा रही थी. वे किसी तरह तत्कालीन शासक से मुक्ति पाना चाहती थी.
इसके अलावा रूसी समाज दो और भागों में बटा हुआ था. पहला उच्च वर्ग तथा दूसरा निम्न वर्ग. उच्च वर्ग के लोगों को बहुत से विशेषाधिकार मिले हुए थे. उनको राज्य के उच्च पद प्राप्त थे. इनके पास अपार धन-संपत्ति थी और ऐशोआराम की सारी सुविधाएं थी. इसके विपरीत दूसरे वर्ग में निर्धन मजदूर, दास, कृषक आदि थे. इनको दिनभर कठिन मेहनत करने के बाद भी भरपेट भोजन मिल नहीं पाता था. उन पर तरह-तरह के अत्याचार किए जाते थे. उनको हर जगह भेदभाव का सामना करना पड़ता था. इस कारण ऊंची और नीची जाति के बीच परस्पर शत्रुता बढ़ती जा रही थी.
2. जार की निरंकुशता
रूस में लंबे समय से निरंकुशता की शासन चली आ रही थी. रूस के जार इच्छाधारी तथा दैविय सिद्धांतों के आधार पर शासन करने के पक्षपाती थे. रूस के जार अलेक्जेंडर द्वितीय ने उदारवादी शासन स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन उनके सुधार कार्यों सामंतों और जमींदारों ने तीव्र विरोध किया. इस कारण अलेक्जेंडर द्वितीय ने फिर से निरंकुश और कठोर शासन कायम किया. उसके पुत्र एलेग्जेंडर तृतीय ने उससे भी अधिक निरंकुश और कठोर शासन स्थापित करने की कोशिश की. उसने सिंहासन पर बैठते ही एक रूस एक चर्च का नारा दिया. उसने प्रेस और विश्वविद्यालय की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की कोशिश की. स्वशासन संस्थाओं के अधिकारों को सीमित कर दिया. संपूर्ण रूसी जनता को यूनानी चर्च स्वीकार करने की आज्ञा देकर यहूदियों पर काफी अत्याचार किए. जर्मन भाषा में शिक्षा बंद कर दी. देश में केवल रूसी भाषा के इस्तेमाल करने की आज्ञा जारी किए और सभी देशवासियों का रूसीकरण करने की कोशिश की. दक्षिणी रूस में रहने वाले सभी प्रोटेस्टैण्टों को बाहर निकाल दिया गया. इस प्रकार की नीति के कारण रूस के अधिकांश लोग उसके विरोधी बन गए.
3. भ्रष्ट नौकरशाही
1905 ई. की रूस की क्रांति के लिए रूस के भ्रष्ट नौकरशाही भी काफी हद तक जिम्मेवार थे. इस समय रूस के अधिकांश सरकारी अधिकारी अयोग्य, भ्रष्ट, निकम्मी और घूसखोर थे. अधिकांश अधिकारी विलासिता की जीवन व्यतीत करते थे जिस कारण सामान्य जनता त्रस्त हो चुकी थी. ये सरकारी अधिकारी जार को प्रसन्न रखने और उच्च पदों की प्राप्ति को ही अपना लक्ष्य बना चुके थे. इनसे जनता का कोई भला हो नहीं रहा था. ऐसे में जनता के मन में इन से छुटकारा पाने की इच्छा जाग रही थी.
4. यूनानी कैथोलिक चर्च का प्रभाव
रूस के जार ने यूनानी कैथोलिक (ऑर्थोडोक्स चर्च) को रूस का राजधर्म घोषित कर चुका था. यह चर्च भी जार की निरंकुशता का पक्षपाती था. जार की संरक्षण पा कर यूनानी कैथोलिक चर्च के पादरी भी निरंकुश हो गए. इनके मनमानी से आम जनता भी त्रस्त होने लगी. इस कारण जनता इसने छुटकारा पाने की दिशा में कोशिश करने लगी.
5. इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति
इसी बीच रूस में औद्योगिक क्रांति हुई. औद्योगिक क्रांति के कारण इंग्लैंड में परिवहन के साधनों और बड़े-बड़े कल कारखानों का विकास हुआ. इससे वहां की जनता के रहन-सहन में व्यापक परिवर्तन हुआ. इंग्लैंड में हुए इस महान परिवर्तन का व्यापक प्रभाव रूसी जनता पर भी पड़ा. अतः रूस के मजदूर वर्ग भी इस प्रकार की परिवर्तन और सुख सुविधाएं प्राप्त करने की चाह रखने लगी थी. अतः उन्होंने भी इसके लिए अपनी आवाज उठानी आरंभ कर दी. इस के परिणामस्वरूप रूस के मजदूर संगठनों और पूंजीपतियों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई.
6. राजनीतिक चेतना में वृद्धि
रूस के जार की निरंकुशतावादी शासन के कारण लोगों को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था. रूस में रहने वाले ज्यादातर अल्पसंख्यक वर्ग के लोग उनके अत्याचार से तंग आकर अन्य देशों की ओर पलायन कर गए. पाश्चात्य देशों के संपर्क में आने के बाद इन लोगों के मन में राजनीतिक चेतना जागृत होने लगी. इस कारण वे रूस के जार की निरंकुशतावादी शासन के खिलाफ आवाज उठाने आरंभ कर दिए. बहुत से देशभक्त रूसियों ने अपने-अपने राजनीतिक संगठन बनाने आरंभ कर दिए. इस प्रक्रिया में मुक्ति संघ, संवैधानिक लोकतंत्र, समाजवादी लोकतंत्र दल तथा समाजवादी क्रांतिकारी दल आदि राजनीतिक संगठनों का निर्माण हुआ. इन संगठनों ने रूस की जनमानस में जारशाही की निरंकुशता के खिलाफ चेतना भरने का कार्य किया.
7. रूस-जापान युद्ध में पराजय
1904 ई. में रूस-जापान युद्ध हुआ. इस युद्ध में रूस को करारी हार का सामना करना पड़ा. रूस की जनता में पहले से ही जारशाही की निरंकुशता के खिलाफ असंतोष था. इस युद्ध में मिली पराजय ने रूस की जनता का आक्रोश और भी ज्यादा बढ़ा दिया. अतः अब रूस की जनता जारशाही की निरंकुशता खत्म करने के लिए पूरी तरह तत्पर थी.
रूस की क्रांति का परिणाम

1. मजदूर वर्ग के मन राजनीतिक चेतना में वृद्धि
2. सेना और कृषक वर्ग की महत्व का स्पष्ट होना

3. सोवियत निकायों का महत्व स्पष्ट होना
4. अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर आंदोलनों पर प्रभाव

5. 1917 ई. के रूसी क्रांति का मार्ग प्रशस्त करना
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