रूस – जापान युद्ध (1904-05)
1904-05 में रूस और जापान के बीच युद्ध हुआ. इस युद्ध में रूस को हार का सामना करना पड़ा.

रूस – जापान युद्ध (1904-05) युद्ध के कारण
1. शिमोन्स्की की संधि पर हस्तक्षेप
प्रथम चीन-जापान युद्ध में जापान ने चीन को बुरी तरह पराजित किया था. युद्ध में हारने के बाद चीन को शिमोन्स्की की संधि करने पर मजबूर होना पड़ गया. इस संधि के परिणामस्वरूप जापान को लियाओतुंग, फारमोसा, पैस्केडोर्स जैसे द्वीपों पर अधिकार प्राप्त हो गया था. इस संधि के बाद चीन में जापान का प्रभाव काफी बढ़ गया और जापान विश्व के महाशक्तियों में उभरा. युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में 50 लाख डॉलर भी मिल गया. इस संधि के बाद रूस, फ्रांस और जर्मनी के कान खड़े हो गए. वे जापान की बढ़ते प्रभाव को देख नहीं सकते थे. अत: तीनों मिलकर शिमोन्स्की की संधि का विरोध करना आरम्भ कर दिया. तीनों के दबाव में उसे शिमोन्स्की की संधि से पीछे हटना पड़ गया. इस प्रकार अपमानित होकर पीछे हटना जापान के गले से उतर नहीं रहा था. अत: उसने रूस को सबक सिखाने के लिए अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत बनाने में जुट गया.
2. मंचुरिया पर प्रभाव बढ़ाने का संघर्ष
चीन के उत्तर- पूर्वी सीमा पर स्थित चीन का एक प्रान्त मंचूरिया रूस और जापान मतभेद का मुख्य कारण था. यह क्षेत्र उपजाऊ भूमि साथ-साथ लोहा, कोयला तथा बहुत से खनिजों का भण्डार था. इस पर रूस और जापान दोनों अपना-अपना प्रभाव फ़िराक में थे. शिमोन्स्की की संधि के बाद जापान का प्रभाव इस क्षेत्र पर बढ़ने लगा था. लेकर रूस ने इस संधि का विरोध करके जापान को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था. इसी आड़ में रूस अपना प्रभाव चीन पर बढ़ाने की कोशिश करने लगा. जापान से रूस के साथ इस विवाद को सुलझाना चाहा लेकिन रूस ने जापान के किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया. अत: इस बातों ने रूस-जापान युद्ध की भूमिका तैयार की.
3. आंग्ल- जापान संधि
1902 ई में इंग्लॅण्ड और जापान के बीच संधि हुई. इस संधि को आंग्ल-जापान संधि कहा जाता है. इंग्लॅण्ड भी रूस के बढ़ते प्रभाव को देखकर सशंकित था. अत: वह जापान की मदद से रूस को रोकना चाहता था. इस संधि के तहत दोनों देशों में से किसी एक को तीसरे के साथ युद्ध करना पड़े तो दूसरा देश तटस्थ रहेगा, लेकिन युद्ध में यदि अन्य देश शत्रु देश की मदद करता है तो वे एक-दूसरे को सैन्य सहायता प्रदान करेंगे. इस संधि से जापान का मनोबल काफी बढ़ गया था.

रूस-जापान युद्ध के परिणाम
1. जापान के प्रभाव में वृद्धि
इस युद्ध की घोषणा जापान ने की थी. अत: यह युद्ध जापान के लिए जीवन- मरण का सवाल था. इसीलिए अगर जापान युद्ध में हार जाता तो पहले के युद्धों में हुई जीत का कोई मतलब नहीं रह जाता. इसीलिए इस युद्ध को जीतने के लिए उसने सर्वस्व दावं में लगा दिया. इस दौरान जापान की आंतरिक हालात भी ठीक नहीं थी. देश के अंदर विद्रोह चल रहा था. इन सबके दृष्टिकोण से उनका युद्ध जीतना जरूरी था. युद्ध जीतने के बाद जापान ने खुद को विश्व के सामने एक उभरती महाशक्ति के रूप में दिखाया. उसकी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और शक्ति में काफी वृद्धि हुई.

2. रूस पर प्रभाव
इस युद्ध में मिली करारी हार ने उसे अंदर तक झकझोर दिया. रूस की जनता आक्रोश होकर रूसी जार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए. एकतंत्र स्वेच्छाचारी शासन का अंत हो का नारा गली-गली में गूंजने लगा. 1905 की रूसी क्रांति, 26 जनवरी की भीषण हत्याकांड, ड्यूमा की स्थापना आदि घटना इसी युद्ध में हुई हार का ही परिणाम था. 1917 की बोल्शेविक क्रांति भी इसी पृष्ठभूमि पर तैयार हुई थी.
3. यूरोप की राजनीति पर प्रभाव
इस युद्ध ने सिर्फ रूस-जापान को ही नहीं बल्कि यूरोपीय शक्तियों में भी उथल-पुथल मचा दी. इस युद्ध के बाद रूस का प्रसार पूर्वी एशिया की ओर से रूक कर बाल्कन प्रदेश की ओर हो गया जिसकी वजह से आगे चलकर ये बोस्निया समस्या तथा बाल्कन युद्धों की पृष्ठभूमि तैयार की. यूरोप में गुटबाजी को बढ़ावा मिला. आंग्ल-जापान संधि के करण फ्रांस चाहकर भी रूस की मदद नहीं कर पाया. 1907 में फ्रांस के प्रयास से रूस इंग्लैंड के करीब आया और तीनों के बीच त्रिपक्षीय समझौता हुई. दूसरी ओर इस संधि के खिलाफ जर्मनी, ऑस्ट्रिया और इटली का गुट भी तैयार हो गया. इस प्रकार यूरोप दो गुटों में बंट गया.

4. एशिया पर प्रभाव
युद्ध में जापान की जीत ने एशिया के शोषित राष्ट्रों में नवजागरण की लहर पैदा कर दी. चीन ने भी जापान के हर उस तरीके अपनाने शुरू कर दिए जिसकी वजह से वह एक महाशक्ति के रूप में उभरा. उसने महसूस किया कि देश में लूट खसोट करने वाली यूरोपीय शक्तियों को सिर्फ हथियार के बल पर निकाला जा सकता है. इसी पृष्ठभूमि पर 1911 की चीनी क्रांति की योजना तैयार हुई. जापान के इस जीत का प्रभाव भारत में भी देखा जाने लगा क्योंकि भारत भी इस समय ब्रिटिश सरकार के अधीन था. अतः भारतीय भी अपनी आजादी की मांग को लेकर आंदोलन करने को प्रेरित हुए. सुरेन्द्र बनर्जी के अनुसार “पूर्व में सूर्योदय हुआ है. जापान ने उगते सूर्य का अभिवादन किया है. सूर्य अपने पूर्ण तेज के समय भारत के क्षितिज पर भी आएगा और भारत को आलोकित करेगा.”
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