हैदर अली कौन थे?
हैदर अली साधारण कृषक परिवार में जन्म लिया था. उसने मैसूर के प्रधानमंत्री नजराज के पास एक सैनिक के रूप में नौकरी करना शुरू किया. इस समय कर्नाटक में युद्ध चल रही थी. इस कारण चारों तरफ अशांति का माहौल था. ऐसे में हैदर अली को अपनी योग्यता दिखाने का अवसर मिला. इस बीच 1750 ई. इसी में हैदराबाद के निजाम नासिर जंग की हत्या हो गई. इस घटना के बाद हैदर अली ने अपने सहयोगियों की मदद से मृत नासिर जंग के खजाने को अपने अधिकार में ले लिया. इस खजाने की मदद से उसने अपने दल में सैनिकों की भर्ती करना शुरू कर किया और उनको फ्रांसीसी सेनापतियों से प्रशिक्षित करवाया. उसने फ्रांसीसी अधिकारियों की मदद से एक तोपखाना भी स्थापित किया.
हैदर अली के कार्य
हैदर अली के कार्यों और उपलब्धियों का अध्ययन करने पर हम पाते है कि भारतीय मध्यकालीन इतिहास में उसका बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है. उसे मैसूर के प्रधानमंत्री नजरराज के साथ काम करने का अवसर भी मिला. उसी दौरान एक बार उसने अंग्रेजों की एक टुकड़ी से बहुत सी बंदूके तथा भारी मात्रा में गोला-बारूद लूट लिया. इसके बाद हैदर अली की सैन्य शक्ति में काफी वृद्धि हो गई. उसे अपनी सेना को चलाने के लिए काफी धन की जरूरत थी. अतः उसने अपने पड़ोसी राज्यों में लूटपाट करके धन इकट्ठा करना शुरू कर दिया. इस काम में उसे काफी सफलता मिलती गई और जल्दी ही उसके पास एक विशाल सेना बन गई. उसकी सफलता से प्रभावित होकर मैसूर के राजा ने उसे अपने सेना का प्रधान सेनापति नियुक्त किया. 1760 ई. में हैदर अली ने प्रधानमंत्री नजराज से मैसूर की सारी शक्ति छीन ली और अपने सारे विरोधियों को भी अपने पक्ष में कर लिया. हैदर अली की बढ़ती ताकत में तत्कालीन परिस्थितियों में भी बहुत बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच होने वाले संघर्षों ने कर्नाटक की समृद्धि का नाश कर दिया था. पानीपत के तृतीय युद्ध के बाद मराठे भी कमजोर हो चुके थे. हैदराबाद का निजाम भी दुर्बल हो चुका था. ऐसे में हैदर अली की दिन-प्रतिदिन बढ़ती शक्ति पर अंकुश लगाने वाला कोई बचा नहीं था.
हैदर अली की उपलब्धि
1. राज्य के विस्तार
हैदर अली ने जैसे-जैसे अपनी शक्ति और सामर्थ्य बढ़ता गया. उसने अपने राज्य का विस्तार करना भी आरंभ कर दिया. 1763 में बेदनूर के राजा की मृत्यु हो गई. उनके मृत्यु होते ही उनके दो उत्तराधिकारी सिहासन के लिए आपस में लड़ने लगे. हैदर अली ने दोनों को पकड़वा कर उनकी हत्या कर दी और उसने बेदनूर का नाम बदलकर हैदरनगर रख दिया और वहां अपने विश्वासपात्र व्यक्ति को नियुक्त कर दिया. उसने कोचीन, पालघाट, कालीकट तथा कन्नड़ पर विजय प्राप्त की. मालाबार के नायकों का दमन किया. दक्षिणी भारत के पोलीगारों को अपनी अधीनता स्वीकार करने पर बाध्य किया. सुण्डा, सीरी और गुटी को भी अपने राज्य में मिला. लिया इस प्रकार अपने राज्य की सीमाओं में विस्तार करके हैदर अली वापस अपने राजधानी श्रीरंगपट्टनम वापस लौट गया.
2. हैदर अली और मराठे
हैदर अली के बढ़ते प्रभाव और शक्ति के कारण सशंकित होकर पेशवा माधव राज ने 1764 ई. में मैसूर पर आक्रमण कर दिया. हैदर अली और मराठों के बीच सबानूर के दक्षिण में स्थित वलहिली के क्षेत्र में भीषण संघर्ष हुआ. इस युद्ध में हैदर अली पराजित हो गया और मार्च 1765 ई. में उसे मराठों के साथ संधि करनी पड़ी. इस संधि के अनुसार उसे मराठों को गुटी तथा वानूर जिले और अलावा 32 लाख रुपए नकद देने पड़े.
इसके एक साल बाद 1766 ई. में अंग्रेजों, मराठों और निजाम ने मिलकर हैदर अली के खिलाफ एक शक्तिशाली संघ बना लिया. यद्यपि हैदर अली पढ़ा लिखा नहीं था लेकिन उसकी बुद्धि बड़ी विलक्षण थी. उसने उनके इस गुट को अपनी कूटनीति से भंग कर दिया. उसने मराठों को 35 लाख रुपए देने का आश्वासन प्रदान करके उनको इस ग्रुप से अलग कर दिया और 18 लाख रूपए नकद तथा शेष रुपयों के बदले उनको कोलार का जिला देकर मराठा सेना को वापस महाराष्ट्र भेज दिया.
मार्च 1769 ई. में अंग्रेजों और हैदर अली के बीच में एक संधि हुई थी. इस संधि के अनुसार यदि कोई हैदर अली पर आक्रमण करेगा तो अंग्रेज उसे सैन्य सहायता प्रदान करेंगे. इस संधि के कुछ समय बाद मराठों ने हैदर अली पर आक्रमण कर दिया. ऐसी स्थिति में हैदर अली ने अंग्रेजों से सहायता मांगी लेकिन अंग्रेजों ने हैदर अली को कोई सहायता प्रदान नहीं की. इस वजह से हैदर अली अंग्रेजों की इस विश्वासघात के कारण उनका कट्टर शत्रु बन गया. हैदर अली ने मराठों के कुछ प्रदेश देकर वापस लौटा दिया. इसके बाद मराठों में आंतरिक कलाह होने लगे. इसका मुख्य कारण राघोवा ने अल्प वयस्क पेशवा नारायण राव की हत्या कर दी और वह स्वयं पेशवा बनने की कोशिश करने लगा. हैदर अली ने इस आंतरिक कलाह का लाभ उठाया और उसने मराठों पर आक्रमण करके उन सभी प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया जिसे उसने मराठों को दिए थे. उसने चित्रदुर्ग, बूटी और बिलारी पर अपना अधिकार जमा लिया तथा कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच मराठा प्रदेशों को मैसूर में मिला दिया.
मराठों ने हैदर अली को पराजित करने की बहुत कोशिश किया लेकिन वे असफल रहे. अतः पेशवा के प्रधानमंत्री नाना फड़नवीस ने हैदर अली से मेलजोल बढ़ाने का प्रयास किया और अपना दूत गणेशराव को हैदर अली के पास भेजा. 1780 ई. में नाना फड़नवीस और हैदर अली के बीच एक समझौता हुआ. इस संधि के अनुसार हैदर अली ने अंग्रेजों को भारत से निकालने के लिए मराठों को यथाशक्ति सहायता देने का वचन दिया. नाना फडणवीस ने भी हैदर अली से वसूल की जाने वाली वार्षिक चौथ में भारी कमी कर दी.
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